Tuesday, September 18, 2018

幻灯片:全球十大亟需保护的海洋生物

大到世界上最大型的鱼类鲸鲨,小至北美黑鲍鱼和麋角珊瑚,海洋生物正处于危险的境地。

过度捕捞、非法贩卖、旅游影响、气候变化、疾病、污染等因素无一不在威胁着海洋物种的生存。这些因素虽然各异,但都与人类活动息息相关,并且大多是可以预防的。海洋是一个复杂且敏感的生态系统,食物链上的一个变故可以对其他生物产生致命的影响。 017年《中外对话》最受欢迎的报道中,关于中国国内事务与境外活动的报道可以说是平分秋色。因此,除了关于中国在空气污染治理,以及加速化石燃料转型等方面的重要报道之外,中国对拉美地区的投资和“一带一路”倡议也引起了广泛的兴趣。以下是这10篇报道的速览:

1. 文化:帝国寻羊记:日本侵华的环境影响
20世纪30年代日本对内蒙古东部(当时隶属伪满洲国)进行殖民统治时,当地的游牧民族被认为是一个“垂死挣扎”的民族,那里的环境和人民需要帝国的干预才能复兴。之后,日本人在当地进行了几十年的杂交羊繁育和紫花苜蓿种植试验,至今都对当地的环境和人们产生着深远的影响。
樱•克里斯马斯,4月25日

2.特别报道:实地探访:揭秘中巴经济走廊重镇瓜达尔港
中巴经济走廊全长3000公里,从中国西部一直向南延伸到巴基斯坦的瓜达尔渔港。作为中国“一带一路”倡议的关键组成部分,瓜达尔港项目却在当地,特别是当地渔民中间引起了争议。他们担心新的海上基础设施建设会让他们迁出港口。当人们还在这个沉闷的小镇中,等待着有关方面兑现他们改善公共服务、增加就业的承诺时,渔民们却可能要迁离他们的渔场。
佐费恩·易卜拉欣,6月16日

3. 共享单车:盛世还是疯狂?
过去几年来,共享单车在中国各大城市爆发式增长。五颜六色的共享单车可以通过移动应用程序解锁,为人们提供了廉价、便利和环保的出行方式。共享单车有助于减少汽车通行量,降低城市污染和拥堵,但同时也引发了新的问题。共享单车企业竞相加大车辆投放给环境带来了破坏,而单车数量的激增也因为堵塞了人行道而备受谴责。
刘琴、张春,6月9日

4. 中国2017年空气质量目标能否实现?
中国政府2013年颁布的《大气污染防治行动计划》提出了一系列解决雾霾问题的措施。该计划于2017年进入最后的冲刺阶段,北京的目标尤其严峻,要将年均 .5浓度控制在60微克/立方米(ppm)。最近的数据表明,这一目标可能会实现,但实现目标的压力却使北京市以外的农村地区付出了代价。
张春,1月25日

5. 中国参与“一带一路”煤电项目的利与弊
中国的“一带一路”倡议的目标是通过投资,主要是基础设施建设投资来促进65个沿线国家的经济增长。该计划虽然目标宏伟,但同时也受到了一些质疑。例如,推动煤电产业投资,从而在未来几十年,使发展中国家锁定在一种过去数十年里损害了人民健康、并造成气候变化的电力生产模式中。
冯灏,5月12日

6. 绿色企业200强中国独占鳌头
新版绿色能源和技术200强企业榜单揭晓,中国清洁能源领域全球领导地位确立。该榜单列出了各行各业排名前200位的绿色能源和技术企业。今年的榜单中,排名前200位的绿色企业中有71家是中国公司,几乎是上榜美国企业的两倍。
夏•洛婷,2月22日

7. 储能技术能加速中国可再生能源发展吗?
尽管2016年又是中国可再生能源发展取得标志性进步的一年,但清洁电力依然面临入网难的困境。为了确保电网能够满足如太阳能和风能等间歇性能源的需求,政府正推动储能技术的发展,并大力推进电力市场改革。
查尔斯韦斯特,2月27日

8. 中国能源“十三五”再度调高低碳目标
作为世界上最大的温室气体排放国,中国的“十三五”能源发展规划不仅在国内来说是件大事,其对全球气候也将产生深远的影响。1月份,该计划终于揭开了神秘的面纱,提出了2020年的目标,不仅大幅提高了发展低碳能源的雄心,同时还严控煤炭消费和新燃煤电厂建设。
马天杰,1月5日

9:采访: 专家:三江源国家公园面临环境挑战
2015年,中国政府宣布了在青藏高原三江源地区新建自然保护区的计划。地质学家杨勇在接受采访时,解释了气候变化如何导致上游地区断流现象日益普遍,并给当地的生物多样性造成威胁的。水流量减少,加之流域内大力开展水电建设加剧了对当地的破坏。
刘琴,3月8日

10. 中拉经济合作:谈钱不简单
近年来,中国一直是拉美的主要贷款国,但随着该地区许多国家经济下滑,人们对债务国所能承受的债务水平以及债务偿还方式表示了担忧。由于中国的贷款主要集中在能源和矿产资源领域,专家们呼吁该地区的国家推动可再生能源项目的投资。

Tuesday, September 11, 2018

कम्युनिस्ट पार्टियों की लीडरशिप में कहां है दलित?

भारत में अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं. देश में तमाम विपक्षी दल के ज़रिए एक महागठबंधन बनाने की बात हो रही है. इन विपक्षी दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) भी अहम हि
दूसरा यह कि जिस तरह की आर्थिक नीतियां मोदी सरकार लागू कर रही है, उससे लोग परेशान हैं. हमारे अन्नदाता, देश के किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं. नौजवानों के लिए हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था, लेकिन अब तो उल्टे लोगों के हाथों से नौकरियां जा रही हैं.
सवालः मैं आपके रोडमैप की बात कर रहा हूं, आप राष्ट्रीय एकता अखंडता की बात कर रहे हैं, यह नारा तो राजीव गांधी ने भी दिया था इंदिरा गांधी की हत्या के बाद. तो आने वाले चुनाव में आपके पास नया क्या है?
नए-पुराने की बात नहीं है. दरअसल आज के दिन देश में गरीब, दलित, अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं है. इसके लिए वैकल्पिक रास्ता चाहिए, वैकल्पिक नातियां चाहिए. इसलिए हमारा नारा है कि 'देश को नेता नहीं नीतियां चाहिए'.
इसके लिए मौजूदा सरकार को हटाना
सवालः अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां आपके विधायकों की संख्या 44 से 5 पर आ गई. वहां आपका जो कैडर है, गांव के गांव बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, इसको कैसे रोकेंगे.
पश्चिम बंगाल में हमारे सामने बहुत ही गंभीर समस्या है. वहां हमारे 200 कॉमरेडों की हत्याएं हुई हैं. ये बिलकुल ग़लत ख़बर है कि गांव के गांव छोड़कर बीजेपी में जा रहे हैं. वहां पर लाखों वामपंथी लोग हैं जो कार्यरत हैं.
सवालः जब आपको दो तिहाई बहुमत मिलता है पश्चिम बंगाल में, उस वक्त आपके मुख्यमंत्री ऑन रिकॉर्ड टेलीविज़न इंटरव्यू में कहते हैं, कैपिटलिज़्म इज़ द ओनली वे आउट('   ') तो फिर ग़लती कहां हो गई?
इसके बारे में पार्टी ने भी उनकी आलोचना की. ये पार्टी की राय नहीं है. ज़रूर, एक पूंजीवादी व्यवस्था में देश है, और देश का एक हिस्सा बंगाल भी है.
लेकिन उसी पूंजीवादी व्यवस्था के विकल्प में वैकल्पिक नीतियां जो लागू की हैं, वहीं बंगाल में ख़ासियत रही. फिर चाहे भूमि-सुधार की बात हो, पंचायती राज की बात हो. ये सब बातों को छोड़कर सिर्फ़ पूंजीवाद ही एकमात्र समाधान और रास्ता है. इसकी आलोचना पार्टी ने की है.
ज़रूरी है. हमारी पार्टी ने तय किया कि इस चुनाव में देश में हर जगह से सांप्रदायिक ताक़तों के ख़िलाफ़ वोट को बंटने से बचाना है.
स्सा है.
पिछले कुछ वक़्त से वामपंथी संगठनों के लाल झंडे के साथ दलित संगठनों का नीला रंग भी शामिल हो गया है और एक नारा उभर कर आया 'जय भीम लाल सलाम', तो क्या अब सीपीआई (एम) दलितों के मुद्दों के साथ आगे बढ़ने वाली है और आगामी चुनावों से पहले उनकी क्या रणनीतियां हैं?
सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी से पूरा साक्षात्कार यहां पढ़िए.
सवालः जो उम्मीद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से लोगों को है, उसे पूरा करने के लिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए पार्टी का क्या रोडमैप है?
साल 2019 के चुनाव में हमें दो मुख्य चुनौतियों का सामना करना है और उनका जवाब देना है. पहला देश की एकता और अखंडता पर सांप्रदायिक ताक़तें जिस तरह से हमला कर रही हैं, उससे देश को बचाना बेहद ज़रूरी है.
सवालः कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के बारे में एक ऐसी धारणा है कि वे जनता से सीधा कनेक्ट नहीं कर पाते, जनता की ज़ुबान में नहीं बोलते हैं. जिस तरह नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल या मायावती बात करते हैं उसके मुक़ाबले आपका बात करने का तरीका सेमिनार सरीखा होता है. ऐसी आपकी आलोचना होती है. क्या इस पर कभी चर्चा होती है?
यह एक तरह का दुष्प्रचार है. कुछ दिन पहले दिल्ली में लाखों किसान मज़दूर आए हैं वो किससे प्रोत्साहित होकर आए हैं...
सवालः लेकिन यह समर्थन फिर वोट में तब्दील क्यों नहीं होता?
(हंसते हुए) यह सवाल तो पार्टी के अंदर भी सबसे बड़ा चर्चा का मुद्दा है. देश के अंदर वर्ग संघर्ष दो टांगों पर टिका हुआ है. एक
सवालः भले ही आपको पसंद ना आए, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी दलित पक्ष की पार्टी ये आपने अब कहना शुरू किया है. जब कन्हैया कुमार ने जेएनयू में 'लाल सलाम, जय भीम' कहना शुरू किया तब ये बातें आनी शुरू हुई. लेकिन सवाल यही है कि कम्युनिस्ट पार्टियों में दलितों का नेतृत्व कहां है?
कन्हैया कुमार से पहले भी यह नारा आ रहा था कि 'लाल झंडा-नीला झंडा, जय भीम लाल सलाम'...
सवालः यह तो कांशीराम के उद्भव के बाद की चीज़ है उससे पहले यह नहीं था.
बिलकुल, राजनीति के अंदर यह उसी समय उभर कर आई जब बहुजन समाज पार्टी उभर कर आई और कांशीराम जी ने उसे आगे बढ़ाया, यह बात बिलकुल ठीक है.
लेकिन दलित आंदोलन और वामपंथी आंदोलनों के बीच संबंध की बात आज की नहीं बल्कि बहुत पुरानी है. हां, वामपंथी और दलित नेताओं के बीच मतभेद भी हुए हैं. लेकिन यह कहना कि वामपंथी दलित विरोधी हैं, यह कहना ग़लत है.
सवालः दलित विरोधी नहीं, वामपंथी की छवि दलितपक्षीय नहीं हैं, जैसे बीएसपी सीधे-सीधे दलितों की बात करती है. अब बीजेपी ने भी कई दलित नेताओं के साथ संबंध बनाए और वो सरकार में भी हैं. जबकि आपकी पूरी रवायत से ही दलित ग़ायब हैं?
जो दलित संगठन हैं, जो दलितों की बात करते हैं, वो हमें भी अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करते हैं, यह बदलाव तो आ रहा है.
है आपका आर्थिक शोषण दूसरा है सामाजिक शोषण. अब सिर्फ एक टांग को लेकर आर्थिक शोषण को लेकर आप दौड़ने की कोशिश करेंगे तो चल भी नहीं पाएंगे.
जब तक सामाजिक शोषण का जो संघर्ष है, उसे आर्थिक शोषण के संघर्षों के साथ नहीं जोड़ेंगे तो यही विरोधाभाष फ़िलहाल नज़र आता है.
पहले नारा होता था कि जिस भी फ़ैक्ट्री से धुंआ निकलता हुए दिखे तो उसके गेट पर लाल झंडा लहराना चाहिए. अब हमारा कहना है कि यह तो होना ही चाहिए, इसके साथ हर गांव में जिस कुएं से दलितों और पिछड़ों को पानी नहीं पीने देते, उस कुएं के ऊपर भी लाल झंडा नहीं लहराएगा, यह भरोसा नहीं आएगा.
इसी विरोधाभाष को हम भी समझने की कोशिश कर रहे हैं, लोग लाखों की संख्या में संघर्ष करने आते हैं, लाठी खाते हैं, जेल जाते हैं लेकिन जब वोट का समय आता है, तब अपनी सामाजिक समझ के आधार पर बंट जाते हैं.
सवालः पिछले चुनाव में बीजेपी को दलितों के वोट बैंक का 24 प्रतिशत वोट मिलाऔर दलित समाज कम्युनिस्ट पार्टियों को थोड़ा शक़ की निगाह से देखता है. कम्युनिस्ट पार्टियों में कितने दलित और दूसरी जातियों के लोग नेतृत्व करने वाले क़द तक पहुंच पाए?
ये आरोप ग़लत हैं. हालांकि अगर ऊपरी स्तर पर देखें तो दलितों का प्रतिनिधित्व जितना होना चाहिए उतना नहीं है. ये मैं भी मानता हूं, और इसको दुरुस्त करने की ज़रूरत है. वो हमारी प्राथमिकता भी है.

Thursday, September 6, 2018

वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में सौरभ चौधरी ने स्वर्ण पदक जीता, अर्जुन सिंह चीमा को कांस्य मिला

रिया).  वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में गुरुवार को भारत को दो पदक मिले। 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा के जूनियर वर्ग में शूटर सौरभ चौधरी ने स्वर्ण पदक जीता। वहीं, अर्जुन सिंह चीमा को कांस्य पदक मिला। वहीं, कोरिया के होजिन लिम ने रजत पदक अपने नाम किया।
सौरभ चौधरी ने 581 का स्कोर करके तीसरे स्थान पर रहते हुए फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था। फाइनल में वे अपने आखिरी शॉट पर 10 का स्कोर नहीं कर पाए, लेकिन इसके बावजूद वो वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके थे। उन्होंने पांच शॉट्स की दूसरी सीरीज के साथ बढ़त हासिल की और गोल्ड अपने नाम कर लिया। नेवा.   युगांडा दुनिया का सबसे ऊर्जावान और कुवैत सबसे सुस्त देश है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 168 देशों के सर्वे में यह निष्कर्ष सामने आया है। इस रैकिंग में भारत का 117वां स्थान है। ब्रिटेन 123 और अमेरिका 143वें नंबर पर हैं। 
देशों की रैकिंग के लिए पर्याप्त व्यायाम को पैमाना माना गया था। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हफ्ते में कम से कम 75 मिनट का सख्त व्यायाम या फिर 150 मिनट की धीमी शारीरिक गतिविधियां करना पर्याप्त व्यायाम है। इसमें युगांडा के लोग सबसे आगे रहे। सर्वे में बताया गया कि युगांडा में सिर्फ 5.5% लोग ऐसे हैं, जो पर्याप्त रूप से सक्रिय नहीं हैं।निया के 140 करोड़ लोग निष्क्रिय:  डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के हर चार में से एक यानी करीब 140 करोड़ वयस्क पर्याप्त एक्सरसाइज नहीं करते। कुवैत, सऊदी अरब और इराक की आधी से ज्यादा आबादी इस मामले में पीछे है। ज्यादातर देशों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम सक्रिय हैं। गरीब देशों के लोग कई अमीर देशों की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा सक्रिय हैं। 
रिपोर्ट में कहा गया कि बैठे-बैठे काम करने वाले पेशे और वाहनों पर निर्भरता इसकी वजह है। साल 2001 से 2016 के बीच ग्लोबल एक्सरसाइज लेवल में खास सुधार नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन 2025 के लक्ष्य में पिछड़ गया। डब्ल्यूएचओ अगले 7 साल में शारीरिक निष्क्रियता का स्तर 10% कम करना चाहता है। इसके मुताबिक ज्यादातर देशों में तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
नई दिल्ली. पेट्रोल और डीजल के रेट गुरुवार को फिर बढ़ाए गए। दिल्ली में पेट्रोल 20 पैसे की बढ़ोतरी के साथ 79.51 रुपए प्रति लीटर हो गया। मुंबई में 19 पैसे का इजाफा किया। यहां रेट 86.91 रुपए पहुंच गया। तेल कंपनियों ने बुधवार को कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया। इससे पहले 26 अगस्त से 4 सितंबर तक लगातार 10 दिन रेट बढ़ाए।
पेट्रोल-डीजल के रेट हर रोज नए रिकॉर्ड उच्च स्तरों पर पहुंच रहे हैं। उधर, सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने के लिए तैयार नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कहा-  बाहरी वजहों से तेल महंगा हुआ। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव आता रहता है।ई दिल्ली. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के खिलाफ हैं। वे बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने पंकज मेश्राम की याचिका पर कहा था कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मीडिया को 'दलित' शब्द का इस्तेमाल बंद करने के लिए निर्देश जारी करने पर विचार करे। याचिका में सरकारी दस्तावेजों और पत्रों से भी दलित शब्द को हटाने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट के निर्देश पर केंद्र ने मीडिया के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए कहा कि उन्हें दलित शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए और इसकी जगह पर 'अनुसूचित जाति' का इस्तेमाल करना चाहिए। अठावले ने कहा कि सरकारी कामकाज में दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल तो ठीक है, लेकिन बोलचाल में दलित शब्द के प्रयोग पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
दलित शब्द पर फख्र : उन्होंने ने कहा कि दलित शब्द जाति विशेष के लिए नहीं बना, बल्कि समाज में पिछड़ा, गरीब और वंचित तबका भी दलित है। इस शब्द से समाज के युवा गौरवान्वित महसूस करते हैं। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट भी कह चुका है कि केंद्र और राज्य सरकारों को पत्राचार में दलित शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि यह शब्द संविधान में नहीं है।
नई दिल्ली. पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO समिट में हिस्सा लेने दो दिवसीय दौर पर आज चीन जा रहे हैं। डेढ़ महीने में ये उनका दूसरा दौरा है। समिट में चीन, और पाकिस्तान समेत 8 देश शामिल होंगे। भारत और पाकिस्तान को पिछले साल ही इस समिट की सदस्यता मिली है। उनकी ये पहली समिट होगी। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच इस कार्यक्रम में दोनों देशों के प्रमुख आमने-सामने होंगे। व्यापार और आतंकवाद होनी है।

इन सबके बीच  . ने पूर्व विदेश सचिव शशांक, फॉरेन एक्सपर्ट वेद प्रताप वैदिक और रहीस सिंह से बात की। समझा कि पहली बार शामिल हो रहे भारत के लिए  समिट के क्या मायने हैं, क्या इससे आतंकवाद का कोई हल निकलेगा.... कैसे ये मीटिंग पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने का काम करेगी। बातचीत से कुछ मुद्दे निकालकर सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।       

# पहली बार हिस्सा ले रहे हैं भारत-पाकिस्तान
- जून 2001 में चीन, रूस और 4 मध्य एशियाई देश कजाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन शुरू किया। संगठन का मकसद व्यापार और सुरक्षा की दृष्टि से आपसी सहयोग बढ़ाना है।
- भारत और पाकिस्तान को पिछले साल ही इस संगठन में पूर्ण रूप सदस्यता मिली है। इस बार 9 और 10 जून को चीन के क्विंगदाओ शहर में हो रहे  समिट में दोनों देश पहली बार हिस्सा ले रहे हैं।

# पाकिस्तान पर बढ़ेगा दबाव
- पूर्व विदेश सचिव शशांक के मुताबिक, सम्मेलन में पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर दबाव बढ़ेगा। चूंकि, SCO समिट का मकसद सुरक्षा पर बात करना भी है ऐसे में भारत को एक मौका मिलेगा कि वो आतंकवाद पर खुलकर बोल सके।
- चीन इसमें मुश्किल खड़ी कर सकता है। लेकिन रूस के दखल के चलते चीन पर भी प्रेशर रहेगा। ऐसे में पाक पर दबाव बनाने में भारत सफल हो सकता है।

# समिट से भारत को मिल सकती है नए बिजनेस कॉरिडोर में एंट्री
- विदेश मामलों के जानकार वेद प्रकाश वैदिक के मुताबिक, सेंट्रल एशिया के किसी भी देश से भारत की सीमा सीधे नहीं जुड़ती। ऐसे में इन देशों में जाने के लिए पाकिस्तान या चीन अधिकृत क्षेत्रों से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन इस समिट में उसे नए बिजनेस कॉरिडोर में एंट्री मिल सकती है।
- इन देशों तक पहुंचने के लिए अभी सबसे अहम रूट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर ( ) है। जिसके तहत मुंबई से लेकर यूरोप तक को समुद्र, रोड और रेल नेटवर्क से जोड़ने की प्लानिंग है।
- इसी नेटवर्क के एक रूट, जो कजाकस्तान और तुर्कमेनिस्तान के बीच से होकर गुजरेगा, इस समिट के सदस्य भारत को इस नए रूट में एंट्री दिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं।

# बढ़ती पेट्रोल-डीजल कीमतों के बीच मिल सकते हैं तेल के नए ऑप्शन
- पूर्व विदेश सचिव शशांक ने बताया कि सेंट्रल एशिया के देश एनर्जी सरप्लस देश हैं। भारत 80% आयल और गैस बाहर से मंगाता है। 
- ऐसे में  समिट में एनर्जी कॉरिडोर की बात बनती है तो भारत के लिए अच्छी बात होगी। इसमें तुर्कमेनिस्तान सदस्य नहीं है लेकिन वो सम्मेलन में ऑब्जर्वर की भूमिका में रहेगा। ऐसे में कजाकस्तान-तुर्कमेनिस्तान के तौर पर भारत के लिए नए तेल और गैस के ऑप्शन खुल सकते हैं।
- ऐसा होने पर भारत यहां से सस्ता क्रूड ऑयल लेकर पेट्रोल-डीजल सस्ता करने की सोच सकता है।

# सम्मेलन से भारत को हो सकता है ये नुकसान भी
- वेद प्रकाश वैदिक के मुताबिक एक तरफ भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का ग्रुप बन रहा है। दूसरी तरफ  में चीन और रूस समेत सेंट्रल एशिया के चार देशों का दूसरा संगठन खड़ा हो रहा है।
- ऐसे में कहीं ये मैसेज न चला जाए कि  अमेरिका के खिलाफ जा सकता है। इसलिए भारत को बहुत सोच समझकर कदम उठाना होगा। उसे बैलेंस ऑफ डिप्लोमेसी बनाकर रखनी होगी। 

# भारत को साथ रखना चीन की मजबूरी
- विदेश मामलों के जानकार वैदिक का कहना है कि समिट में चीन बड़े जिम्मेदार की भूमिका निभाने की सोच रहा है। वो अगले 20 साल में अमेरिका की जगह लेने की फिराक में है।
- ऐसे में भारत को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी है। कई देशों को ये भी डर है कि चीन SCO के जरिए नाटो को टक्कर दे सकता है।
- वहीं, इस पर पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि अब चीन को अपनी पोजीशन क्लियर करनी होगी। उसे भारत को साथ लेकर चलना होगा। इसके पीछे का कारण ये है कि चीन टकराव की स्थिति में भारत को अपने विरोध में खड़ा नहीं देखना चाहता है।