इस सवाल पर अतुल अनेजा कहते हैं, "अगर इसे आप शॉर्ट टर्म के नज़रिए से
देखें तो कहा जा सकता है कि ये हार है, लेकिन मसूद अज़हर और आतंकवाद का
मसला लॉन्ग टर्म मसला है. इसे एक बार फिर चीन की ओर से इसे रोका गया है.
चीन ने इस पर टेक्निकल होल्ड लगाते हुए इस मसले को रोका है. लेकिन चीन
लॉन्ग टर्म कूटनीति कर रहा है क्योंकि वो भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता
की बात कर रहा है."
अतुल तनेजा कहते हैं, "अभी तो हम ये कह सकते हैं कि ये भारत के लिए हार
है. चीन ने अपने विदेश मंत्री को पाकिस्तान भेजा और भारत से भी बात करके मध्यस्थता करने की इच्छा जताई है. तो इस बार आप देखेंगे कि ये संदर्भ बड़ा
है. अभी इस फ़ैसले के बाद ये संभव है कि भारत और पाकिस्तान के मोर्चे पर चीन अपनी कूटनीति में तेज़ी लाए."
हाल के दिनों में भारत और
पाकिस्तान के बीच तनाव काफ़ी बढ़ा है. 14 फ़रवरी को भारत प्रशासित कश्मीर
के पुलवामा में आत्मघाती हमला किया गया जिसमें सीआरपीएफ़ के कम से कम चालीस
जवान मारे गए थे. इस हमले के लिए मसूद अज़हर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद को
ज़िम्मेदार बताया जा रहा है.
अतुल कहते हैं, ''चीन से पाकिस्तान के संबंध बेहद घनिष्ठ हैं. ऐसा शीत
युद्ध के वक़्त के पहले से चला आ रहा है. हाल ही के दिनों में चीन ने चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर शुरू किया, जो उनका एक फ्लैगशिप प्रोजेक्ट
था. सभी को पता है कि पाकिस्तान और चीन का रिश्ता बेहद गहरा है. मसूद अज़हर पर लगने वाली रोक ज़ाहिर तौर पर इस रिश्ते का ही नतीजा है. लेकिन हम
देखेंगे कि अब चीन भारत को इस बातचीत में शामिल कर रहा है."
"लगभग
एक-डेढ़ साल से जब से चीन और भारत के बीच डोकलाम विवाद हुआ है तब से चीन
अपनी कूटनीति के तहत भारत को बातचीत में शामिल कर रहा है. इस बदलाव को आप
वैश्विक परिदृश्य में देखें तो पता चलेगा कि जब से चीन और अमरीका के
संबंधों में खटास आई है वो अब अन्य देशों को साथ लेकर चलने की दिशा में काम
कर रहा है और इसी सिलसिले में चीन की कूटनीति इन दिनों एक बड़े बदलाव के
दौर से गुजर रही है. हालांकि ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अभी भी चीन के लिए
पाकिस्तान का पलड़ा भारी है."
अतुल मानते हैं कि सऊदी, अमरीका की तरह चीन भी अब भारत और पाकिस्तान के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका अदा करना चाहता है.
वो
कहते हैं, "चीन बार-बार भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को
उत्सुक नज़र आ रहा है. मसूद अज़हर का मसला हो या आतंकवाद का, चीन चाहता है
कि वह एक ऐसे नतीजे की ओर पहुंचे जिससे पाकिस्तान भी नाराज़ ना हो और भारत
के साथ उसके जो नए तरह के रिश्तों का रास्ता खुला है वो भी इससे प्रभावित
ना हों."
"ये संतुलन बना पाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अगर चीन ऐसा करना चाहता है तो उसे एक योजना बनानी होगी, जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों के हितों को रखा जाए. मुझे लगता है कि इस दिशा में काम चल रहा है. अगर चीन मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने देता है तो ये पाकिस्तान की हार होगी. चीन को ये सोचना
होगा कि इसके बदले वो पाकिस्तान को क्या दे सकता है."
आज चीन ने जो
किया है इस फ़ैसले को अंतिम ना माना जाए. ये एक प्रक्रिया शुरू हुई. चीन के
विदेश मंत्री अभी पाकिस्तान के दौरे से लौटे हैं और इच्छा जाहिर की है कि
वो भारत में भी आएं. अब ये भारत पर निर्भर करता है कि वह चीन की इस पहल पर
क्या प्रतिक्रिया देता है.
"हमें ये देखना होगा कि कुछ अन्य देशों
ने भी भारत-पाकिस्तान के विवाद में कदम बढ़ाया है. सऊदी अरब के विदेश
मंत्री भारत आ चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुर्की के
राष्ट्रपति अर्दोआन से बात की है."
अतुल कहते हैं कि भारत इस्लामिक
देशों की बैठक में शामिल हुआ. ऐसे में हमें समझना होगा कि पुलवामा हमले के बाद एक नए दौर की शुरुआत है और चीन के रोक के इस फ़ैसले को आखिरी ना माना
जाए.
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