تزامنت بعثة أوكسفورد مع قلاقل عمت المنطقة، إذ خضع المغرب للحماية
الفرنسية منذ عام 1912 وبعد نفي السلطان محمد الخامس عام 1953 اندلعت أعمال
عنف قمعتها سلطات الاستعمار بقسوة لإخماد جذوة الحركة القومية بالمغرب.
وبينما
استعد الطلاب للانتقال من إنجلترا إلى سان سيباستيان بإسبانيا متأهبين للعبور إلى المغرب عبر جبل طارق صيف عام 1955، كان الاحتلال الفرنسي يترنح وكانت البلاد بانتظار المجهول.
ومع وصول الطلاب إلى شمال أفريقيا بحثوا عن قرية نائية تناسب غايتهم طالبين الحماية من ذوي الأمر، ومنهم
التهامي الكلاوي والذي عرف بباشا مراكش عام 1912، وقبلها بسيد الأطلس إذ
سيطر على درب القوافل عبر جبال جنوب المغرب، وكان له قصره الشهير في تيلويت بوسط البلاد وعُد بين أثرى أثرياء العالم إبان وفاته عام 1956.
أمضى
الطلاب ليلتهم لدى الكلاوي قبل أن يرتب أحد الشيوخ لهم قافلة من البغال
تحمل أمتعتهم بينما سار الطلاب مسافة 35 كيلومترا من تيلويت إلى إديهر.
واليوم
أتيتُ مثل هؤلاء الطلاب إلى المغرب بحثا عن مغامرة. فبعد أن عشت في
الولايات المتحدة لعقد من الزمان، وفدت إلى المغرب على أمل كتابة رواية،
وذات يوم وبينما كنت أتفقد الكتب بإحدى مكتبات الدار البيضاء وقع بصري على قصة تلك البعثة وتملكتني أخبار الصعاب التي واجهها مغامروها الخمسة، وبينهم مترجم مغربي ودارس لعلم الحيوان وآخر دارس لعلم أعراق البشر وثالث
للجغرافيا، فضلا عن باحث نباتات.
ويروي الكتاب أنه خلال الرحلة التي دامت 17 يوما كان الطلاب ينامون بشرفة أحد المسؤولين البريطانيين، وأسعدهم
الحظ بلقاء المستكشف الشهير ويلفرد تيسيغر وكادوا أن يقعوا بين أيدي
اللصوص في مراكش. وبعد وصولهم إلى "إديهر" خيموا لسبعة أسابيع قضوها في البحث.
وجاء تمويلهم الرئيسي من القائمين على نادي المستكشفين بجامعة أوكسفورد ليتمكنوا من شراء شاحنتهم فضلا عن مبلغ مئة جنيه إسترليني
تلقوها مقدما من مجلة ناشيونال جيوغرافيك مقابل كتابة مقال عن الرحلة.
وفي
الأسابيع السابقة على الرحلة استعد الطلاب بالكثير من الطعام والبنسلين ولوازم النظافة الشخصية، ويذكر كلارك أن سيدة عجوز استأجر لديها غرفة أعطته من الشطائر ما يكفيه للرحلة وقد صنعتها خصيصا له.
وقد وقع اختيار
الطلاب على إديهر لموقعها النائي بأعلى جبال الأطلس رغبة منهم في الوقوف على مكان لم تمسه المدنية الحديثة حتى يتسنى لهم دراسة معتقدات سكانه وأساليب زراعتهمونصب الطلاب خيمهم بجانب جدول ماء قرب شجرة جوز ضخمة في قلب القرية.
ويقول
كلارك إنه مع مرور الأيام نشأت صداقة بين الطلاب والقرويين الذين قبلوا الدعوة لخيمة المستكشفين لشرب الشاي وبادلوهم الدعوة لديارهم البسيطة حيث
قدموا لهم طعاما من الطواجن المطهوة بعناية.
وخلال ذلك كشف السكان للزوار عن معتقدات بدائية تتعلق بقوى الطبيعة يؤمنون بها، فضلا عن اعتقادهم
في الجن، وبدأوا ينظرون إلى الطلبة كأنهم معالجون خارقون بعد أن قدموا لهم بعضا مما لديهم من البنسلين.
وكلما قرأت ما كتبه كلارك استبد بي الشغف لمعرفة ماذا حدث مع إديهر، وهل القرية مازالت موجودة؟
طالعت
خرائط غوغل وسألت مغاربة في مراكش باللغة العربية ولم يستطع أحد أن يدلني على شيء. بل اتصلت بأرملة كلارك وسألتها إن كان أي من فريق البعثة عاد
مجددا، وعلمت أن كلارك لم يعد وأن لا علم لها بالآخرين.
ويبدو أن تلك النقطة الصغيرة على الخريطة تلاشت تماما ولم يعد من دليل عليها إلا
خريطة بسيطة رسمت باليد احتوى عليها كتاب كلارك باعتبار وقوعها على مسافة
16 كيلومترا من بلدة زركتن بين قريتي تادرت وتيلويت في إقليم الحوز، ولم أكن أعرف ما إذا كان اسم القرية تغير أم أنها اختفت تماما وأردت أن أقف على الحقيقة.
وبدا أن تادرت أقرب قرية على الخرائط الحديثة من الموقع
الذي حدده كلارك لإديهر، فقدت السيارة لثلاث ساعات من مراكش وكان السائق
بمثابة مترجم لي عسى أن أعرف مصير إديهر.
تجمع حولنا مجموعة من الرجال وحملقوا في كتاب كلارك بينما كررت أنا والسائق اسم القرية على
مسامعهم، ونظروا مليا في الخريطة اليدوية وأخيرا أشار أحدهم إلى الجبال
البعيدة، بعدها أعاننا ميكانيكي سيارات طيب يدعى كريم بتأكيده أن إديهر
موجودة وسوف يأخذني هناك.
خلال الرحلة إلى إديهر تعرف طلاب أوكسفورد على معتقدات بدائية لسكان القرية من الإيمان بقوى الطبيعة والغيبيات
انتظرت
بمقهى على الطريق في تادرت برفقة كتاب كلارك مفتوحا على منضدة بينما اتصل كريم بصديق له، وبدأت بعثة ارتجالية شملتني وسائقي وكريم وصديقه، وكانت سيارته هي الأضخم في الناحية، وهي رباعية الدفع قادرة على السير بين
الجبال.
Friday, November 16, 2018
Friday, October 5, 2018
आपके लिए कहा जाता है कि आप गंभीर साहित्यकार की श्रेणी
लेकिन बंद होने से पहले बंगाल गज़ट हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के बीच
मिलीभगत के इतने राजदार पर्दे खोल चुका था कि इंग्लैंड को इस मामले में दखल
देनी ही पड़ी और संसद सदस्यों ने इस मामले में जांच बैठाई.
जांच पूरी होने के बाद हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, दोनों को ही महाभियोग का सामना करना पड़ा.
वैसे अख़बारों की दुनिया के लिए कहानी आज भी बहुत ज़्यादा नहीं बदली है. आज भी प्रेस का गला घोंटने की तमाम कोशिशें की जाती हैं.
सत्ता में बैठे तमाम बड़े लोगों के पास इतनी ताक़त होती है वो आम लोगों को अपनी बात मानने पर मजबूर कर ही देते हैं, ये आम लोग अख़बारों में क्या पढ़ना चाहिए और कैसे पढ़ना चाहिए सबकुछ इन्हीं ता़कतवर लोगों के अनुसार पढ़ रहे होते हैं.
राजनीति में तानाशाहों का होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर मौजूदा वक़्त में यह इतना ख़तरनाक क्यों हो गया है?
दरअसल अब समाचार प्राप्त करने के इतने अधिक माध्यम हैं कि ग़लत और सही समाचार में फ़र्क पहचान पाना बहुत मुश्किल हो गया है.
फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर और भी ना जाने कितने माध्यमों के ज़रिए कई तरह के समाचार हरवक़्त हमारी नज़रों के सामने तैरते रहते हैं.
इसका नतीजा यह हुआ है कि दुनियाभर में लोग अपनी-अपनी विचारधारा के अनुसार बंटने लगे हैं.
सोशल मीडिया पर फ़ैली ख़बरें लोगों में हिंसा भड़काने का काम कर रही हैं. जैसे भारत में ही व्हाट्सऐप के ज़रिए बच्चा चोरी की कुछ ख़बरें फैल गईं और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भीड़ ने कुछ लोगों को मार भी दिया.
ऐसे माहौल में गूगल, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो ख़बरों के लिए कुछ मानक तय करें.
हमें याद रखना चाहिए कि हेस्टिंग्स जैसे लोग तो आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन ये लोग अपनी परछाईं को हमेशा के लिए अंकित ज़रूर कर देते हैं.
हेस्टिंग्स जैसे लोग भारत में अपनी राजनीति को इस तरह से संगठित करते हैं कि करोड़ों की आबादी वाला भारत कुछ सैकड़ों लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाता है.
आज से कई सौ साल पहले हेस्टिंग्स और हिक्की के बीच जो लड़ाई हुई थी वह मौजूदा वक़्त से ज़्यादा अलग नहीं है, उस में फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि अब इस लड़ाई को लड़ने वाले हथियार बदल गए हैं.
पहली बार मैंने क्राइम पर किताब लिखी है. ये एक मर्डर मिस्ट्री है. अक्सर मैं प्रेम कहानियां लिखा करता था, लेकिन लगा कि काफ़ी लिख लिया इस पर. इसमें लिखा भी हुआ है 'एन अनलव स्टोरी'. एक लड़का है जो अपनी एक्स-गर्लफ्रेंड को भुला नहीं पा रहा है, उसको कैसे अनलव करता है, ये उसी पर आधारित है.
जब लव स्टोरी बेस्टसेलर बन रहीं थी तो फिर क्राइम स्टोरी क्यों?
जो चीज़ आपकी चल निकलती है, तो वही करते रहने पर भी काम चल जाएगा, लेकिन वो ग़लत होता है. मेरे पाठक भी तो मुझसे उम्मीद करते हैं कि कुछ सरप्राइज़, कुछ नया अंदाज़, कोई अनोख़ी चीज़ लेकर आऊं.
लव को तो कई लोग मार्केट करते रहते हैं. लेकिन कई लोग होते हैं जिनका ब्रेकअप हो जाता है, उन्हें काफ़ी टाइम लगता है उससे उबरने में. उनकी ज़िंदगी के एक-दो साल बर्बाद भी हो जाते हैं. इसलिए अनलविंग भी सीखना ज़रूरी है कि कैसे किसी इंसान को अपने सिस्टम से निकाल देना है.
इस कहानी में कश्मीर का बैकड्रॉप है. जो हीरोइन है वो कश्मीरी मुस्लिम है. जो लड़का है उसके पिता जी आरएसएस के नेता हैं. इन सब पर मुझे रिसर्च करनी पड़ी. कश्मीर पर, मुस्लिम पर, आरएसएस पर.
आपकी जितनी फिक्शन किताबें आईं, उनमें एक नंबर ज़रूर होता है. मसलन, 'वन नाइट एट कॉल सेंटर', 'टू स्टेट', 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ़ माइ लाइफ़'. ये नंबर वाला टोटका क्या है?
क्योंकि मैं इंजीनियर था, बैंक में था तो ये बस उन्हीं दिनों की याद है कि मैं वहां से आया हूं. लेखक का तो बैकग्राउंड नहीं था.
विवादास्पद विषयों पर लिखना क्या आसान है आज के वक्त में?
हां, लिख सकते हैं. मैंने भी तो लिखी ही है. कश्मीरी मुस्लिम लड़की है. पहले 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ़ माइ लाइफ़' लिखी थी जो गोधरा दंगों के बैकड्रॉप पर थी.
मैं फिल्म की सोच कर अलग क्यों लिखूंगा. कहानी अच्छी होनी चाहिए. कहानी अच्छी होगी तो किताब हिट होगी, किताब हिट होगी तो फिल्म बनेगी ही बनेगी. फिल्म अगर बननी भी हो तो किताब से बहुत कुछ बदल सकते हैं. लेकिन किताब लिखते हुए मुझे बस एक बात देखनी है कि ये लोगों को पसंद आए.
सबसे बेहतरीन कमेंट क्या मिला है?
लोगों ने कहा है कि उनकी ज़िंदगी बदली है मेरे लिखने से. कुछ पेरेंट्स जो अपने बच्चों की शादी के लिए नहीं मान रहे थे, लेकिन वो 'टू स्टेट' आने के बाद मान गए. अस्पतालों में कई सीरियस मरीज़ होते हैं, टीवी वगैरह देखने की इजाज़त उन्हें नहीं होती तो वो मेरी किताबें पढ़ते हैं. ज़्यादा खुश होते हैं वो. पॉज़िटिव महसूस करते हैं. लोगों ने बांटी हैं मेरी किताब 'टू स्टेट' अपने बारातियों को.
टिप्पणी तो हर तरह की मिली है, लेकिन दिल दुखाने की इजाज़त नहीं देता मैं किसी को. इतना कोई करीब़ ही नहीं है.
मैं खुद कहता हूं कि मैं लिटरेचर नहीं लिखता हूं. मैं चाहता हूं कि मेरी किताबें आम बच्चे पढ़ें. सिंपल किताबें हों, तभी तो बच्चे पढ़ते हैं इतने सारे. मैं चाहता हूं कि ज़ायादा लोग पढ़ें और वही मेरा उद्देश्य रहा है.
अरविंद अडिगा को, अरुंधति रॉय को बुकर प्राइज़ मिला है, कभी आप भी वहां तक पहुंचने की सोचते हैं?
सबको सब कुछ नहीं मिलता है ज़िंदगी में. मिले तो अच्छा है, लेकिन मुझे लगता नहीं कि मुझे मिल सकता है. शायद मैं इतना अच्छा लिखता भी नहीं. लेकिन मुझे भी अपनी तरह का काम करने का हक़ है. अवॉर्ड नहीं जीते तो क्या, दिल तो जीत लिए. परसों एमेज़ॉन ने किताबों की डिलीवरी करवाई मुझसे. मैं खुद जाकर डिलीवर कर रहा था जिन्होंने प्री-ऑर्डर की है मेरी किताब.
मैंने एक स्लम में जाकर भी डिलीवर की अपनी किताब. धारावी में रहने वाली एक लड़की ने मेरी किताब ऑर्डर की थी. वो पल मेरे लिए बुकर प्राइज़ से बड़ा था कि एक स्लम में रहने वाली लड़की को मेरी किताब पसंद आ गई बजाय कि लंदन में रहने वाले किसी को आई और मुझे अवॉर्ड दे दिया.
जांच पूरी होने के बाद हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, दोनों को ही महाभियोग का सामना करना पड़ा.
वैसे अख़बारों की दुनिया के लिए कहानी आज भी बहुत ज़्यादा नहीं बदली है. आज भी प्रेस का गला घोंटने की तमाम कोशिशें की जाती हैं.
सत्ता में बैठे तमाम बड़े लोगों के पास इतनी ताक़त होती है वो आम लोगों को अपनी बात मानने पर मजबूर कर ही देते हैं, ये आम लोग अख़बारों में क्या पढ़ना चाहिए और कैसे पढ़ना चाहिए सबकुछ इन्हीं ता़कतवर लोगों के अनुसार पढ़ रहे होते हैं.
राजनीति में तानाशाहों का होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर मौजूदा वक़्त में यह इतना ख़तरनाक क्यों हो गया है?
दरअसल अब समाचार प्राप्त करने के इतने अधिक माध्यम हैं कि ग़लत और सही समाचार में फ़र्क पहचान पाना बहुत मुश्किल हो गया है.
फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर और भी ना जाने कितने माध्यमों के ज़रिए कई तरह के समाचार हरवक़्त हमारी नज़रों के सामने तैरते रहते हैं.
इसका नतीजा यह हुआ है कि दुनियाभर में लोग अपनी-अपनी विचारधारा के अनुसार बंटने लगे हैं.
सोशल मीडिया पर फ़ैली ख़बरें लोगों में हिंसा भड़काने का काम कर रही हैं. जैसे भारत में ही व्हाट्सऐप के ज़रिए बच्चा चोरी की कुछ ख़बरें फैल गईं और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भीड़ ने कुछ लोगों को मार भी दिया.
ऐसे माहौल में गूगल, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो ख़बरों के लिए कुछ मानक तय करें.
हमें याद रखना चाहिए कि हेस्टिंग्स जैसे लोग तो आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन ये लोग अपनी परछाईं को हमेशा के लिए अंकित ज़रूर कर देते हैं.
हेस्टिंग्स जैसे लोग भारत में अपनी राजनीति को इस तरह से संगठित करते हैं कि करोड़ों की आबादी वाला भारत कुछ सैकड़ों लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाता है.
आज से कई सौ साल पहले हेस्टिंग्स और हिक्की के बीच जो लड़ाई हुई थी वह मौजूदा वक़्त से ज़्यादा अलग नहीं है, उस में फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि अब इस लड़ाई को लड़ने वाले हथियार बदल गए हैं.
लोकप्रिय लेखक चेतन भगत 9 अक्तूबर को
अपना नया उपन्यास लेकर आ रहे हैं और इस बार ये उनके पहले उपन्यासों से अलग
कहा जा रहा है क्योंकि इस बार वे प्यार करना नहीं, प्यार नहीं करना सिखा
रहे हैं. किताब का नाम है - द गर्ल इन रूम 105. बीबीसी संवाददाता सर्वप्रिया सांगवान से बातचीत में उन्होंने अपनी किताब के साथ-साथ अपनी
राजनीति पर भी बात की.
क्या अलग है आपकी किताब में इस बार?पहली बार मैंने क्राइम पर किताब लिखी है. ये एक मर्डर मिस्ट्री है. अक्सर मैं प्रेम कहानियां लिखा करता था, लेकिन लगा कि काफ़ी लिख लिया इस पर. इसमें लिखा भी हुआ है 'एन अनलव स्टोरी'. एक लड़का है जो अपनी एक्स-गर्लफ्रेंड को भुला नहीं पा रहा है, उसको कैसे अनलव करता है, ये उसी पर आधारित है.
जब लव स्टोरी बेस्टसेलर बन रहीं थी तो फिर क्राइम स्टोरी क्यों?
जो चीज़ आपकी चल निकलती है, तो वही करते रहने पर भी काम चल जाएगा, लेकिन वो ग़लत होता है. मेरे पाठक भी तो मुझसे उम्मीद करते हैं कि कुछ सरप्राइज़, कुछ नया अंदाज़, कोई अनोख़ी चीज़ लेकर आऊं.
लव को तो कई लोग मार्केट करते रहते हैं. लेकिन कई लोग होते हैं जिनका ब्रेकअप हो जाता है, उन्हें काफ़ी टाइम लगता है उससे उबरने में. उनकी ज़िंदगी के एक-दो साल बर्बाद भी हो जाते हैं. इसलिए अनलविंग भी सीखना ज़रूरी है कि कैसे किसी इंसान को अपने सिस्टम से निकाल देना है.
इस कहानी में कश्मीर का बैकड्रॉप है. जो हीरोइन है वो कश्मीरी मुस्लिम है. जो लड़का है उसके पिता जी आरएसएस के नेता हैं. इन सब पर मुझे रिसर्च करनी पड़ी. कश्मीर पर, मुस्लिम पर, आरएसएस पर.
आपकी जितनी फिक्शन किताबें आईं, उनमें एक नंबर ज़रूर होता है. मसलन, 'वन नाइट एट कॉल सेंटर', 'टू स्टेट', 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ़ माइ लाइफ़'. ये नंबर वाला टोटका क्या है?
क्योंकि मैं इंजीनियर था, बैंक में था तो ये बस उन्हीं दिनों की याद है कि मैं वहां से आया हूं. लेखक का तो बैकग्राउंड नहीं था.
विवादास्पद विषयों पर लिखना क्या आसान है आज के वक्त में?
हां, लिख सकते हैं. मैंने भी तो लिखी ही है. कश्मीरी मुस्लिम लड़की है. पहले 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ़ माइ लाइफ़' लिखी थी जो गोधरा दंगों के बैकड्रॉप पर थी.
मैं फिल्म की सोच कर अलग क्यों लिखूंगा. कहानी अच्छी होनी चाहिए. कहानी अच्छी होगी तो किताब हिट होगी, किताब हिट होगी तो फिल्म बनेगी ही बनेगी. फिल्म अगर बननी भी हो तो किताब से बहुत कुछ बदल सकते हैं. लेकिन किताब लिखते हुए मुझे बस एक बात देखनी है कि ये लोगों को पसंद आए.
सबसे बेहतरीन कमेंट क्या मिला है?
लोगों ने कहा है कि उनकी ज़िंदगी बदली है मेरे लिखने से. कुछ पेरेंट्स जो अपने बच्चों की शादी के लिए नहीं मान रहे थे, लेकिन वो 'टू स्टेट' आने के बाद मान गए. अस्पतालों में कई सीरियस मरीज़ होते हैं, टीवी वगैरह देखने की इजाज़त उन्हें नहीं होती तो वो मेरी किताबें पढ़ते हैं. ज़्यादा खुश होते हैं वो. पॉज़िटिव महसूस करते हैं. लोगों ने बांटी हैं मेरी किताब 'टू स्टेट' अपने बारातियों को.
टिप्पणी तो हर तरह की मिली है, लेकिन दिल दुखाने की इजाज़त नहीं देता मैं किसी को. इतना कोई करीब़ ही नहीं है.
मैं खुद कहता हूं कि मैं लिटरेचर नहीं लिखता हूं. मैं चाहता हूं कि मेरी किताबें आम बच्चे पढ़ें. सिंपल किताबें हों, तभी तो बच्चे पढ़ते हैं इतने सारे. मैं चाहता हूं कि ज़ायादा लोग पढ़ें और वही मेरा उद्देश्य रहा है.
अरविंद अडिगा को, अरुंधति रॉय को बुकर प्राइज़ मिला है, कभी आप भी वहां तक पहुंचने की सोचते हैं?
सबको सब कुछ नहीं मिलता है ज़िंदगी में. मिले तो अच्छा है, लेकिन मुझे लगता नहीं कि मुझे मिल सकता है. शायद मैं इतना अच्छा लिखता भी नहीं. लेकिन मुझे भी अपनी तरह का काम करने का हक़ है. अवॉर्ड नहीं जीते तो क्या, दिल तो जीत लिए. परसों एमेज़ॉन ने किताबों की डिलीवरी करवाई मुझसे. मैं खुद जाकर डिलीवर कर रहा था जिन्होंने प्री-ऑर्डर की है मेरी किताब.
मैंने एक स्लम में जाकर भी डिलीवर की अपनी किताब. धारावी में रहने वाली एक लड़की ने मेरी किताब ऑर्डर की थी. वो पल मेरे लिए बुकर प्राइज़ से बड़ा था कि एक स्लम में रहने वाली लड़की को मेरी किताब पसंद आ गई बजाय कि लंदन में रहने वाले किसी को आई और मुझे अवॉर्ड दे दिया.
Tuesday, September 18, 2018
幻灯片:全球十大亟需保护的海洋生物
大到世界上最大型的鱼类鲸鲨,小至北美黑鲍鱼和麋角珊瑚,海洋生物正处于危险的境地。
过度捕捞、非法贩卖、旅游影响、气候变化、疾病、污染等因素无一不在威胁着海洋物种的生存。这些因素虽然各异,但都与人类活动息息相关,并且大多是可以预防的。海洋是一个复杂且敏感的生态系统,食物链上的一个变故可以对其他生物产生致命的影响。 017年《中外对话》最受欢迎的报道中,关于中国国内事务与境外活动的报道可以说是平分秋色。因此,除了关于中国在空气污染治理,以及加速化石燃料转型等方面的重要报道之外,中国对拉美地区的投资和“一带一路”倡议也引起了广泛的兴趣。以下是这10篇报道的速览:
1. 文化:帝国寻羊记:日本侵华的环境影响
20世纪30年代日本对内蒙古东部(当时隶属伪满洲国)进行殖民统治时,当地的游牧民族被认为是一个“垂死挣扎”的民族,那里的环境和人民需要帝国的干预才能复兴。之后,日本人在当地进行了几十年的杂交羊繁育和紫花苜蓿种植试验,至今都对当地的环境和人们产生着深远的影响。
樱•克里斯马斯,4月25日
2.特别报道:实地探访:揭秘中巴经济走廊重镇瓜达尔港
中巴经济走廊全长3000公里,从中国西部一直向南延伸到巴基斯坦的瓜达尔渔港。作为中国“一带一路”倡议的关键组成部分,瓜达尔港项目却在当地,特别是当地渔民中间引起了争议。他们担心新的海上基础设施建设会让他们迁出港口。当人们还在这个沉闷的小镇中,等待着有关方面兑现他们改善公共服务、增加就业的承诺时,渔民们却可能要迁离他们的渔场。
佐费恩·易卜拉欣,6月16日
3. 共享单车:盛世还是疯狂?
过去几年来,共享单车在中国各大城市爆发式增长。五颜六色的共享单车可以通过移动应用程序解锁,为人们提供了廉价、便利和环保的出行方式。共享单车有助于减少汽车通行量,降低城市污染和拥堵,但同时也引发了新的问题。共享单车企业竞相加大车辆投放给环境带来了破坏,而单车数量的激增也因为堵塞了人行道而备受谴责。
刘琴、张春,6月9日
4. 中国2017年空气质量目标能否实现?
中国政府2013年颁布的《大气污染防治行动计划》提出了一系列解决雾霾问题的措施。该计划于2017年进入最后的冲刺阶段,北京的目标尤其严峻,要将年均 .5浓度控制在60微克/立方米(ppm)。最近的数据表明,这一目标可能会实现,但实现目标的压力却使北京市以外的农村地区付出了代价。
张春,1月25日
5. 中国参与“一带一路”煤电项目的利与弊
中国的“一带一路”倡议的目标是通过投资,主要是基础设施建设投资来促进65个沿线国家的经济增长。该计划虽然目标宏伟,但同时也受到了一些质疑。例如,推动煤电产业投资,从而在未来几十年,使发展中国家锁定在一种过去数十年里损害了人民健康、并造成气候变化的电力生产模式中。
冯灏,5月12日
6. 绿色企业200强中国独占鳌头
新版绿色能源和技术200强企业榜单揭晓,中国清洁能源领域全球领导地位确立。该榜单列出了各行各业排名前200位的绿色能源和技术企业。今年的榜单中,排名前200位的绿色企业中有71家是中国公司,几乎是上榜美国企业的两倍。
夏•洛婷,2月22日
7. 储能技术能加速中国可再生能源发展吗?
尽管2016年又是中国可再生能源发展取得标志性进步的一年,但清洁电力依然面临入网难的困境。为了确保电网能够满足如太阳能和风能等间歇性能源的需求,政府正推动储能技术的发展,并大力推进电力市场改革。
查尔斯•韦斯特,2月27日
8. 中国能源“十三五”再度调高低碳目标
作为世界上最大的温室气体排放国,中国的“十三五”能源发展规划不仅在国内来说是件大事,其对全球气候也将产生深远的影响。1月份,该计划终于揭开了神秘的面纱,提出了2020年的目标,不仅大幅提高了发展低碳能源的雄心,同时还严控煤炭消费和新燃煤电厂建设。
马天杰,1月5日
9:采访: 专家:三江源国家公园面临环境挑战
2015年,中国政府宣布了在青藏高原三江源地区新建自然保护区的计划。地质学家杨勇在接受采访时,解释了气候变化如何导致上游地区断流现象日益普遍,并给当地的生物多样性造成威胁的。水流量减少,加之流域内大力开展水电建设加剧了对当地的破坏。
刘琴,3月8日
10. 中拉经济合作:谈钱不简单
近年来,中国一直是拉美的主要贷款国,但随着该地区许多国家经济下滑,人们对债务国所能承受的债务水平以及债务偿还方式表示了担忧。由于中国的贷款主要集中在能源和矿产资源领域,专家们呼吁该地区的国家推动可再生能源项目的投资。
过度捕捞、非法贩卖、旅游影响、气候变化、疾病、污染等因素无一不在威胁着海洋物种的生存。这些因素虽然各异,但都与人类活动息息相关,并且大多是可以预防的。海洋是一个复杂且敏感的生态系统,食物链上的一个变故可以对其他生物产生致命的影响。 017年《中外对话》最受欢迎的报道中,关于中国国内事务与境外活动的报道可以说是平分秋色。因此,除了关于中国在空气污染治理,以及加速化石燃料转型等方面的重要报道之外,中国对拉美地区的投资和“一带一路”倡议也引起了广泛的兴趣。以下是这10篇报道的速览:
1. 文化:帝国寻羊记:日本侵华的环境影响
20世纪30年代日本对内蒙古东部(当时隶属伪满洲国)进行殖民统治时,当地的游牧民族被认为是一个“垂死挣扎”的民族,那里的环境和人民需要帝国的干预才能复兴。之后,日本人在当地进行了几十年的杂交羊繁育和紫花苜蓿种植试验,至今都对当地的环境和人们产生着深远的影响。
樱•克里斯马斯,4月25日
2.特别报道:实地探访:揭秘中巴经济走廊重镇瓜达尔港
中巴经济走廊全长3000公里,从中国西部一直向南延伸到巴基斯坦的瓜达尔渔港。作为中国“一带一路”倡议的关键组成部分,瓜达尔港项目却在当地,特别是当地渔民中间引起了争议。他们担心新的海上基础设施建设会让他们迁出港口。当人们还在这个沉闷的小镇中,等待着有关方面兑现他们改善公共服务、增加就业的承诺时,渔民们却可能要迁离他们的渔场。
佐费恩·易卜拉欣,6月16日
3. 共享单车:盛世还是疯狂?
过去几年来,共享单车在中国各大城市爆发式增长。五颜六色的共享单车可以通过移动应用程序解锁,为人们提供了廉价、便利和环保的出行方式。共享单车有助于减少汽车通行量,降低城市污染和拥堵,但同时也引发了新的问题。共享单车企业竞相加大车辆投放给环境带来了破坏,而单车数量的激增也因为堵塞了人行道而备受谴责。
刘琴、张春,6月9日
4. 中国2017年空气质量目标能否实现?
中国政府2013年颁布的《大气污染防治行动计划》提出了一系列解决雾霾问题的措施。该计划于2017年进入最后的冲刺阶段,北京的目标尤其严峻,要将年均 .5浓度控制在60微克/立方米(ppm)。最近的数据表明,这一目标可能会实现,但实现目标的压力却使北京市以外的农村地区付出了代价。
张春,1月25日
5. 中国参与“一带一路”煤电项目的利与弊
中国的“一带一路”倡议的目标是通过投资,主要是基础设施建设投资来促进65个沿线国家的经济增长。该计划虽然目标宏伟,但同时也受到了一些质疑。例如,推动煤电产业投资,从而在未来几十年,使发展中国家锁定在一种过去数十年里损害了人民健康、并造成气候变化的电力生产模式中。
冯灏,5月12日
6. 绿色企业200强中国独占鳌头
新版绿色能源和技术200强企业榜单揭晓,中国清洁能源领域全球领导地位确立。该榜单列出了各行各业排名前200位的绿色能源和技术企业。今年的榜单中,排名前200位的绿色企业中有71家是中国公司,几乎是上榜美国企业的两倍。
夏•洛婷,2月22日
7. 储能技术能加速中国可再生能源发展吗?
尽管2016年又是中国可再生能源发展取得标志性进步的一年,但清洁电力依然面临入网难的困境。为了确保电网能够满足如太阳能和风能等间歇性能源的需求,政府正推动储能技术的发展,并大力推进电力市场改革。
查尔斯•韦斯特,2月27日
8. 中国能源“十三五”再度调高低碳目标
作为世界上最大的温室气体排放国,中国的“十三五”能源发展规划不仅在国内来说是件大事,其对全球气候也将产生深远的影响。1月份,该计划终于揭开了神秘的面纱,提出了2020年的目标,不仅大幅提高了发展低碳能源的雄心,同时还严控煤炭消费和新燃煤电厂建设。
马天杰,1月5日
9:采访: 专家:三江源国家公园面临环境挑战
2015年,中国政府宣布了在青藏高原三江源地区新建自然保护区的计划。地质学家杨勇在接受采访时,解释了气候变化如何导致上游地区断流现象日益普遍,并给当地的生物多样性造成威胁的。水流量减少,加之流域内大力开展水电建设加剧了对当地的破坏。
刘琴,3月8日
10. 中拉经济合作:谈钱不简单
近年来,中国一直是拉美的主要贷款国,但随着该地区许多国家经济下滑,人们对债务国所能承受的债务水平以及债务偿还方式表示了担忧。由于中国的贷款主要集中在能源和矿产资源领域,专家们呼吁该地区的国家推动可再生能源项目的投资。
Tuesday, September 11, 2018
कम्युनिस्ट पार्टियों की लीडरशिप में कहां है दलित?
भारत में अगले साल आम चुनाव होने वाले
हैं. इससे पहले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं. देश में तमाम
विपक्षी दल के ज़रिए एक महागठबंधन बनाने की बात हो रही है. इन विपक्षी दलों
में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) भी अहम हि
दूसरा यह कि जिस तरह की आर्थिक नीतियां मोदी सरकार लागू कर रही है, उससे
लोग परेशान हैं. हमारे अन्नदाता, देश के किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं.
नौजवानों के लिए हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था, लेकिन अब तो
उल्टे लोगों के हाथों से नौकरियां जा रही हैं.सवालः मैं आपके रोडमैप की बात कर रहा हूं, आप राष्ट्रीय एकता अखंडता की बात कर रहे हैं, यह नारा तो राजीव गांधी ने भी दिया था इंदिरा गांधी की हत्या के बाद. तो आने वाले चुनाव में आपके पास नया क्या है?
नए-पुराने की बात नहीं है. दरअसल आज के दिन देश में गरीब, दलित, अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं है. इसके लिए वैकल्पिक रास्ता चाहिए, वैकल्पिक नातियां चाहिए. इसलिए हमारा नारा है कि 'देश को नेता नहीं नीतियां चाहिए'.
इसके लिए मौजूदा सरकार को हटाना
सवालः अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां आपके विधायकों की संख्या 44 से 5 पर आ गई. वहां आपका जो कैडर है, गांव के गांव बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, इसको कैसे रोकेंगे.
पश्चिम बंगाल में हमारे सामने बहुत ही गंभीर समस्या है. वहां हमारे 200 कॉमरेडों की हत्याएं हुई हैं. ये बिलकुल ग़लत ख़बर है कि गांव के गांव छोड़कर बीजेपी में जा रहे हैं. वहां पर लाखों वामपंथी लोग हैं जो कार्यरत हैं.
सवालः जब आपको दो तिहाई बहुमत मिलता है पश्चिम बंगाल में, उस वक्त आपके मुख्यमंत्री ऑन रिकॉर्ड टेलीविज़न इंटरव्यू में कहते हैं, कैपिटलिज़्म इज़ द ओनली वे आउट(' ') तो फिर ग़लती कहां हो गई?
इसके बारे में पार्टी ने भी उनकी आलोचना की. ये पार्टी की राय नहीं है. ज़रूर, एक पूंजीवादी व्यवस्था में देश है, और देश का एक हिस्सा बंगाल भी है.
लेकिन उसी पूंजीवादी व्यवस्था के विकल्प में वैकल्पिक नीतियां जो लागू की हैं, वहीं बंगाल में ख़ासियत रही. फिर चाहे भूमि-सुधार की बात हो, पंचायती राज की बात हो. ये सब बातों को छोड़कर सिर्फ़ पूंजीवाद ही एकमात्र समाधान और रास्ता है. इसकी आलोचना पार्टी ने की है.
ज़रूरी है. हमारी पार्टी ने तय किया कि इस चुनाव में देश में हर जगह से सांप्रदायिक ताक़तों के ख़िलाफ़ वोट को बंटने से बचाना है.
स्सा है.
पिछले
कुछ वक़्त से वामपंथी संगठनों के लाल झंडे के साथ दलित संगठनों का नीला
रंग भी शामिल हो गया है और एक नारा उभर कर आया 'जय भीम लाल सलाम', तो क्या
अब सीपीआई (एम) दलितों के मुद्दों के साथ आगे बढ़ने वाली है और आगामी
चुनावों से पहले उनकी क्या रणनीतियां हैं?सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी से पूरा साक्षात्कार यहां पढ़िए.
सवालः जो उम्मीद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से लोगों को है, उसे पूरा करने के लिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए पार्टी का क्या रोडमैप है?
साल 2019 के चुनाव में हमें दो मुख्य चुनौतियों का सामना करना है और उनका जवाब देना है. पहला देश की एकता और अखंडता पर सांप्रदायिक ताक़तें जिस तरह से हमला कर रही हैं, उससे देश को बचाना बेहद ज़रूरी है.
सवालः कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के बारे में एक ऐसी धारणा है कि वे जनता से सीधा कनेक्ट नहीं कर पाते, जनता की ज़ुबान में नहीं बोलते हैं. जिस तरह नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल या मायावती बात करते हैं उसके मुक़ाबले आपका बात करने का तरीका सेमिनार सरीखा होता है. ऐसी आपकी आलोचना होती है. क्या इस पर कभी चर्चा होती है?
यह एक तरह का दुष्प्रचार है. कुछ दिन पहले दिल्ली में लाखों किसान मज़दूर आए हैं वो किससे प्रोत्साहित होकर आए हैं...
सवालः लेकिन यह समर्थन फिर वोट में तब्दील क्यों नहीं होता?
(हंसते हुए) यह सवाल तो पार्टी के अंदर भी सबसे बड़ा चर्चा का मुद्दा है. देश के अंदर वर्ग संघर्ष दो टांगों पर टिका हुआ है. एक
सवालः भले ही आपको पसंद ना आए, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी दलित पक्ष की पार्टी ये आपने अब कहना शुरू किया है. जब कन्हैया कुमार ने जेएनयू में 'लाल सलाम, जय भीम' कहना शुरू किया तब ये बातें आनी शुरू हुई. लेकिन सवाल यही है कि कम्युनिस्ट पार्टियों में दलितों का नेतृत्व कहां है?
कन्हैया कुमार से पहले भी यह नारा आ रहा था कि 'लाल झंडा-नीला झंडा, जय भीम लाल सलाम'...
सवालः यह तो कांशीराम के उद्भव के बाद की चीज़ है उससे पहले यह नहीं था.
बिलकुल, राजनीति के अंदर यह उसी समय उभर कर आई जब बहुजन समाज पार्टी उभर कर आई और कांशीराम जी ने उसे आगे बढ़ाया, यह बात बिलकुल ठीक है.
लेकिन दलित आंदोलन और वामपंथी आंदोलनों के बीच संबंध की बात आज की नहीं बल्कि बहुत पुरानी है. हां, वामपंथी और दलित नेताओं के बीच मतभेद भी हुए हैं. लेकिन यह कहना कि वामपंथी दलित विरोधी हैं, यह कहना ग़लत है.
सवालः दलित विरोधी नहीं, वामपंथी की छवि दलितपक्षीय नहीं हैं, जैसे बीएसपी सीधे-सीधे दलितों की बात करती है. अब बीजेपी ने भी कई दलित नेताओं के साथ संबंध बनाए और वो सरकार में भी हैं. जबकि आपकी पूरी रवायत से ही दलित ग़ायब हैं?
जो दलित संगठन हैं, जो दलितों की बात करते हैं, वो हमें भी अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करते हैं, यह बदलाव तो आ रहा है.
है आपका आर्थिक शोषण दूसरा है सामाजिक शोषण. अब सिर्फ एक टांग को लेकर आर्थिक शोषण को लेकर आप दौड़ने की कोशिश करेंगे तो चल भी नहीं पाएंगे.
जब तक सामाजिक शोषण का जो संघर्ष है, उसे आर्थिक शोषण के संघर्षों के साथ नहीं जोड़ेंगे तो यही विरोधाभाष फ़िलहाल नज़र आता है.
पहले नारा होता था कि जिस भी फ़ैक्ट्री से धुंआ निकलता हुए दिखे तो उसके गेट पर लाल झंडा लहराना चाहिए. अब हमारा कहना है कि यह तो होना ही चाहिए, इसके साथ हर गांव में जिस कुएं से दलितों और पिछड़ों को पानी नहीं पीने देते, उस कुएं के ऊपर भी लाल झंडा नहीं लहराएगा, यह भरोसा नहीं आएगा.
इसी विरोधाभाष को हम भी समझने की कोशिश कर रहे हैं, लोग लाखों की संख्या में संघर्ष करने आते हैं, लाठी खाते हैं, जेल जाते हैं लेकिन जब वोट का समय आता है, तब अपनी सामाजिक समझ के आधार पर बंट जाते हैं.
सवालः पिछले चुनाव में बीजेपी को दलितों के वोट बैंक का 24 प्रतिशत वोट मिलाऔर दलित समाज कम्युनिस्ट पार्टियों को थोड़ा शक़ की निगाह से देखता है. कम्युनिस्ट पार्टियों में कितने दलित और दूसरी जातियों के लोग नेतृत्व करने वाले क़द तक पहुंच पाए?
ये आरोप ग़लत हैं. हालांकि अगर ऊपरी स्तर पर देखें तो दलितों का प्रतिनिधित्व जितना होना चाहिए उतना नहीं है. ये मैं भी मानता हूं, और इसको दुरुस्त करने की ज़रूरत है. वो हमारी प्राथमिकता भी है.
Thursday, September 6, 2018
वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में सौरभ चौधरी ने स्वर्ण पदक जीता, अर्जुन सिंह चीमा को कांस्य मिला
रिया). वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में गुरुवार को भारत को दो
पदक मिले। 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा के जूनियर वर्ग में शूटर सौरभ चौधरी
ने स्वर्ण पदक जीता। वहीं, अर्जुन सिंह चीमा को कांस्य पदक मिला। वहीं, कोरिया के होजिन लिम ने रजत पदक अपने नाम किया।
सौरभ चौधरी ने 581 का स्कोर करके तीसरे स्थान पर रहते हुए फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था। फाइनल में वे अपने आखिरी शॉट पर 10 का स्कोर नहीं कर पाए, लेकिन इसके बावजूद वो वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके थे। उन्होंने पांच शॉट्स की दूसरी सीरीज के साथ बढ़त हासिल की और गोल्ड अपने नाम कर लिया। नेवा. युगांडा दुनिया का सबसे ऊर्जावान और कुवैत सबसे सुस्त देश है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 168 देशों के सर्वे में यह निष्कर्ष सामने आया है। इस रैकिंग में भारत का 117वां स्थान है। ब्रिटेन 123 और अमेरिका 143वें नंबर पर हैं।
देशों की रैकिंग के लिए पर्याप्त व्यायाम को पैमाना माना गया था। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हफ्ते में कम से कम 75 मिनट का सख्त व्यायाम या फिर 150 मिनट की धीमी शारीरिक गतिविधियां करना पर्याप्त व्यायाम है। इसमें युगांडा के लोग सबसे आगे रहे। सर्वे में बताया गया कि युगांडा में सिर्फ 5.5% लोग ऐसे हैं, जो पर्याप्त रूप से सक्रिय नहीं हैं।निया के 140 करोड़ लोग निष्क्रिय: डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के हर चार में से एक यानी करीब 140 करोड़ वयस्क पर्याप्त एक्सरसाइज नहीं करते। कुवैत, सऊदी अरब और इराक की आधी से ज्यादा आबादी इस मामले में पीछे है। ज्यादातर देशों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम सक्रिय हैं। गरीब देशों के लोग कई अमीर देशों की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा सक्रिय हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि बैठे-बैठे काम करने वाले पेशे और वाहनों पर निर्भरता इसकी वजह है। साल 2001 से 2016 के बीच ग्लोबल एक्सरसाइज लेवल में खास सुधार नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन 2025 के लक्ष्य में पिछड़ गया। डब्ल्यूएचओ अगले 7 साल में शारीरिक निष्क्रियता का स्तर 10% कम करना चाहता है। इसके मुताबिक ज्यादातर देशों में तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
नई दिल्ली. पेट्रोल और डीजल के रेट गुरुवार को फिर बढ़ाए गए। दिल्ली में पेट्रोल 20 पैसे की बढ़ोतरी के साथ 79.51 रुपए प्रति लीटर हो गया। मुंबई में 19 पैसे का इजाफा किया। यहां रेट 86.91 रुपए पहुंच गया। तेल कंपनियों ने बुधवार को कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया। इससे पहले 26 अगस्त से 4 सितंबर तक लगातार 10 दिन रेट बढ़ाए।
पेट्रोल-डीजल के रेट हर रोज नए रिकॉर्ड उच्च स्तरों पर पहुंच रहे हैं। उधर, सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने के लिए तैयार नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कहा- बाहरी वजहों से तेल महंगा हुआ। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव आता रहता है।ई दिल्ली. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के खिलाफ हैं। वे बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने पंकज मेश्राम की याचिका पर कहा था कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मीडिया को 'दलित' शब्द का इस्तेमाल बंद करने के लिए निर्देश जारी करने पर विचार करे। याचिका में सरकारी दस्तावेजों और पत्रों से भी दलित शब्द को हटाने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट के निर्देश पर केंद्र ने मीडिया के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए कहा कि उन्हें दलित शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए और इसकी जगह पर 'अनुसूचित जाति' का इस्तेमाल करना चाहिए। अठावले ने कहा कि सरकारी कामकाज में दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल तो ठीक है, लेकिन बोलचाल में दलित शब्द के प्रयोग पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
दलित शब्द पर फख्र : उन्होंने ने कहा कि दलित शब्द जाति विशेष के लिए नहीं बना, बल्कि समाज में पिछड़ा, गरीब और वंचित तबका भी दलित है। इस शब्द से समाज के युवा गौरवान्वित महसूस करते हैं। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट भी कह चुका है कि केंद्र और राज्य सरकारों को पत्राचार में दलित शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि यह शब्द संविधान में नहीं है।
नई दिल्ली. पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO समिट में हिस्सा लेने दो दिवसीय दौर पर आज चीन जा रहे हैं। डेढ़ महीने में ये उनका दूसरा दौरा है। समिट में चीन, और पाकिस्तान समेत 8 देश शामिल होंगे। भारत और पाकिस्तान को पिछले साल ही इस समिट की सदस्यता मिली है। उनकी ये पहली समिट होगी। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच इस कार्यक्रम में दोनों देशों के प्रमुख आमने-सामने होंगे। व्यापार और आतंकवाद होनी है।
इन सबके बीच . ने पूर्व विदेश सचिव शशांक, फॉरेन एक्सपर्ट वेद प्रताप वैदिक और रहीस सिंह से बात की। समझा कि पहली बार शामिल हो रहे भारत के लिए समिट के क्या मायने हैं, क्या इससे आतंकवाद का कोई हल निकलेगा.... कैसे ये मीटिंग पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने का काम करेगी। बातचीत से कुछ मुद्दे निकालकर सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
# पहली बार हिस्सा ले रहे हैं भारत-पाकिस्तान
- जून 2001 में चीन, रूस और 4 मध्य एशियाई देश कजाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन शुरू किया। संगठन का मकसद व्यापार और सुरक्षा की दृष्टि से आपसी सहयोग बढ़ाना है।
- भारत और पाकिस्तान को पिछले साल ही इस संगठन में पूर्ण रूप सदस्यता मिली है। इस बार 9 और 10 जून को चीन के क्विंगदाओ शहर में हो रहे समिट में दोनों देश पहली बार हिस्सा ले रहे हैं।
# पाकिस्तान पर बढ़ेगा दबाव
- पूर्व विदेश सचिव शशांक के मुताबिक, सम्मेलन में पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर दबाव बढ़ेगा। चूंकि, SCO समिट का मकसद सुरक्षा पर बात करना भी है ऐसे में भारत को एक मौका मिलेगा कि वो आतंकवाद पर खुलकर बोल सके।
- चीन इसमें मुश्किल खड़ी कर सकता है। लेकिन रूस के दखल के चलते चीन पर भी प्रेशर रहेगा। ऐसे में पाक पर दबाव बनाने में भारत सफल हो सकता है।
# समिट से भारत को मिल सकती है नए बिजनेस कॉरिडोर में एंट्री
- विदेश मामलों के जानकार वेद प्रकाश वैदिक के मुताबिक, सेंट्रल एशिया के किसी भी देश से भारत की सीमा सीधे नहीं जुड़ती। ऐसे में इन देशों में जाने के लिए पाकिस्तान या चीन अधिकृत क्षेत्रों से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन इस समिट में उसे नए बिजनेस कॉरिडोर में एंट्री मिल सकती है।
- इन देशों तक पहुंचने के लिए अभी सबसे अहम रूट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर ( ) है। जिसके तहत मुंबई से लेकर यूरोप तक को समुद्र, रोड और रेल नेटवर्क से जोड़ने की प्लानिंग है।
- इसी नेटवर्क के एक रूट, जो कजाकस्तान और तुर्कमेनिस्तान के बीच से होकर गुजरेगा, इस समिट के सदस्य भारत को इस नए रूट में एंट्री दिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
# बढ़ती पेट्रोल-डीजल कीमतों के बीच मिल सकते हैं तेल के नए ऑप्शन
- पूर्व विदेश सचिव शशांक ने बताया कि सेंट्रल एशिया के देश एनर्जी सरप्लस देश हैं। भारत 80% आयल और गैस बाहर से मंगाता है।
- ऐसे में समिट में एनर्जी कॉरिडोर की बात बनती है तो भारत के लिए अच्छी बात होगी। इसमें तुर्कमेनिस्तान सदस्य नहीं है लेकिन वो सम्मेलन में ऑब्जर्वर की भूमिका में रहेगा। ऐसे में कजाकस्तान-तुर्कमेनिस्तान के तौर पर भारत के लिए नए तेल और गैस के ऑप्शन खुल सकते हैं।
- ऐसा होने पर भारत यहां से सस्ता क्रूड ऑयल लेकर पेट्रोल-डीजल सस्ता करने की सोच सकता है।
# सम्मेलन से भारत को हो सकता है ये नुकसान भी
- वेद प्रकाश वैदिक के मुताबिक एक तरफ भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का ग्रुप बन रहा है। दूसरी तरफ में चीन और रूस समेत सेंट्रल एशिया के चार देशों का दूसरा संगठन खड़ा हो रहा है।
- ऐसे में कहीं ये मैसेज न चला जाए कि अमेरिका के खिलाफ जा सकता है। इसलिए भारत को बहुत सोच समझकर कदम उठाना होगा। उसे बैलेंस ऑफ डिप्लोमेसी बनाकर रखनी होगी।
# भारत को साथ रखना चीन की मजबूरी
- विदेश मामलों के जानकार वैदिक का कहना है कि समिट में चीन बड़े जिम्मेदार की भूमिका निभाने की सोच रहा है। वो अगले 20 साल में अमेरिका की जगह लेने की फिराक में है।
- ऐसे में भारत को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी है। कई देशों को ये भी डर है कि चीन SCO के जरिए नाटो को टक्कर दे सकता है।
- वहीं, इस पर पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि अब चीन को अपनी पोजीशन क्लियर करनी होगी। उसे भारत को साथ लेकर चलना होगा। इसके पीछे का कारण ये है कि चीन टकराव की स्थिति में भारत को अपने विरोध में खड़ा नहीं देखना चाहता है।
सौरभ चौधरी ने 581 का स्कोर करके तीसरे स्थान पर रहते हुए फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था। फाइनल में वे अपने आखिरी शॉट पर 10 का स्कोर नहीं कर पाए, लेकिन इसके बावजूद वो वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके थे। उन्होंने पांच शॉट्स की दूसरी सीरीज के साथ बढ़त हासिल की और गोल्ड अपने नाम कर लिया। नेवा. युगांडा दुनिया का सबसे ऊर्जावान और कुवैत सबसे सुस्त देश है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 168 देशों के सर्वे में यह निष्कर्ष सामने आया है। इस रैकिंग में भारत का 117वां स्थान है। ब्रिटेन 123 और अमेरिका 143वें नंबर पर हैं।
देशों की रैकिंग के लिए पर्याप्त व्यायाम को पैमाना माना गया था। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हफ्ते में कम से कम 75 मिनट का सख्त व्यायाम या फिर 150 मिनट की धीमी शारीरिक गतिविधियां करना पर्याप्त व्यायाम है। इसमें युगांडा के लोग सबसे आगे रहे। सर्वे में बताया गया कि युगांडा में सिर्फ 5.5% लोग ऐसे हैं, जो पर्याप्त रूप से सक्रिय नहीं हैं।निया के 140 करोड़ लोग निष्क्रिय: डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के हर चार में से एक यानी करीब 140 करोड़ वयस्क पर्याप्त एक्सरसाइज नहीं करते। कुवैत, सऊदी अरब और इराक की आधी से ज्यादा आबादी इस मामले में पीछे है। ज्यादातर देशों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम सक्रिय हैं। गरीब देशों के लोग कई अमीर देशों की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा सक्रिय हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि बैठे-बैठे काम करने वाले पेशे और वाहनों पर निर्भरता इसकी वजह है। साल 2001 से 2016 के बीच ग्लोबल एक्सरसाइज लेवल में खास सुधार नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन 2025 के लक्ष्य में पिछड़ गया। डब्ल्यूएचओ अगले 7 साल में शारीरिक निष्क्रियता का स्तर 10% कम करना चाहता है। इसके मुताबिक ज्यादातर देशों में तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
नई दिल्ली. पेट्रोल और डीजल के रेट गुरुवार को फिर बढ़ाए गए। दिल्ली में पेट्रोल 20 पैसे की बढ़ोतरी के साथ 79.51 रुपए प्रति लीटर हो गया। मुंबई में 19 पैसे का इजाफा किया। यहां रेट 86.91 रुपए पहुंच गया। तेल कंपनियों ने बुधवार को कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया। इससे पहले 26 अगस्त से 4 सितंबर तक लगातार 10 दिन रेट बढ़ाए।
पेट्रोल-डीजल के रेट हर रोज नए रिकॉर्ड उच्च स्तरों पर पहुंच रहे हैं। उधर, सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने के लिए तैयार नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कहा- बाहरी वजहों से तेल महंगा हुआ। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव आता रहता है।ई दिल्ली. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के खिलाफ हैं। वे बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने पंकज मेश्राम की याचिका पर कहा था कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मीडिया को 'दलित' शब्द का इस्तेमाल बंद करने के लिए निर्देश जारी करने पर विचार करे। याचिका में सरकारी दस्तावेजों और पत्रों से भी दलित शब्द को हटाने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट के निर्देश पर केंद्र ने मीडिया के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए कहा कि उन्हें दलित शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए और इसकी जगह पर 'अनुसूचित जाति' का इस्तेमाल करना चाहिए। अठावले ने कहा कि सरकारी कामकाज में दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल तो ठीक है, लेकिन बोलचाल में दलित शब्द के प्रयोग पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
दलित शब्द पर फख्र : उन्होंने ने कहा कि दलित शब्द जाति विशेष के लिए नहीं बना, बल्कि समाज में पिछड़ा, गरीब और वंचित तबका भी दलित है। इस शब्द से समाज के युवा गौरवान्वित महसूस करते हैं। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट भी कह चुका है कि केंद्र और राज्य सरकारों को पत्राचार में दलित शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि यह शब्द संविधान में नहीं है।
नई दिल्ली. पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO समिट में हिस्सा लेने दो दिवसीय दौर पर आज चीन जा रहे हैं। डेढ़ महीने में ये उनका दूसरा दौरा है। समिट में चीन, और पाकिस्तान समेत 8 देश शामिल होंगे। भारत और पाकिस्तान को पिछले साल ही इस समिट की सदस्यता मिली है। उनकी ये पहली समिट होगी। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच इस कार्यक्रम में दोनों देशों के प्रमुख आमने-सामने होंगे। व्यापार और आतंकवाद होनी है।
इन सबके बीच . ने पूर्व विदेश सचिव शशांक, फॉरेन एक्सपर्ट वेद प्रताप वैदिक और रहीस सिंह से बात की। समझा कि पहली बार शामिल हो रहे भारत के लिए समिट के क्या मायने हैं, क्या इससे आतंकवाद का कोई हल निकलेगा.... कैसे ये मीटिंग पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने का काम करेगी। बातचीत से कुछ मुद्दे निकालकर सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
# पहली बार हिस्सा ले रहे हैं भारत-पाकिस्तान
- जून 2001 में चीन, रूस और 4 मध्य एशियाई देश कजाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन शुरू किया। संगठन का मकसद व्यापार और सुरक्षा की दृष्टि से आपसी सहयोग बढ़ाना है।
- भारत और पाकिस्तान को पिछले साल ही इस संगठन में पूर्ण रूप सदस्यता मिली है। इस बार 9 और 10 जून को चीन के क्विंगदाओ शहर में हो रहे समिट में दोनों देश पहली बार हिस्सा ले रहे हैं।
# पाकिस्तान पर बढ़ेगा दबाव
- पूर्व विदेश सचिव शशांक के मुताबिक, सम्मेलन में पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर दबाव बढ़ेगा। चूंकि, SCO समिट का मकसद सुरक्षा पर बात करना भी है ऐसे में भारत को एक मौका मिलेगा कि वो आतंकवाद पर खुलकर बोल सके।
- चीन इसमें मुश्किल खड़ी कर सकता है। लेकिन रूस के दखल के चलते चीन पर भी प्रेशर रहेगा। ऐसे में पाक पर दबाव बनाने में भारत सफल हो सकता है।
# समिट से भारत को मिल सकती है नए बिजनेस कॉरिडोर में एंट्री
- विदेश मामलों के जानकार वेद प्रकाश वैदिक के मुताबिक, सेंट्रल एशिया के किसी भी देश से भारत की सीमा सीधे नहीं जुड़ती। ऐसे में इन देशों में जाने के लिए पाकिस्तान या चीन अधिकृत क्षेत्रों से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन इस समिट में उसे नए बिजनेस कॉरिडोर में एंट्री मिल सकती है।
- इन देशों तक पहुंचने के लिए अभी सबसे अहम रूट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर ( ) है। जिसके तहत मुंबई से लेकर यूरोप तक को समुद्र, रोड और रेल नेटवर्क से जोड़ने की प्लानिंग है।
- इसी नेटवर्क के एक रूट, जो कजाकस्तान और तुर्कमेनिस्तान के बीच से होकर गुजरेगा, इस समिट के सदस्य भारत को इस नए रूट में एंट्री दिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
# बढ़ती पेट्रोल-डीजल कीमतों के बीच मिल सकते हैं तेल के नए ऑप्शन
- पूर्व विदेश सचिव शशांक ने बताया कि सेंट्रल एशिया के देश एनर्जी सरप्लस देश हैं। भारत 80% आयल और गैस बाहर से मंगाता है।
- ऐसे में समिट में एनर्जी कॉरिडोर की बात बनती है तो भारत के लिए अच्छी बात होगी। इसमें तुर्कमेनिस्तान सदस्य नहीं है लेकिन वो सम्मेलन में ऑब्जर्वर की भूमिका में रहेगा। ऐसे में कजाकस्तान-तुर्कमेनिस्तान के तौर पर भारत के लिए नए तेल और गैस के ऑप्शन खुल सकते हैं।
- ऐसा होने पर भारत यहां से सस्ता क्रूड ऑयल लेकर पेट्रोल-डीजल सस्ता करने की सोच सकता है।
# सम्मेलन से भारत को हो सकता है ये नुकसान भी
- वेद प्रकाश वैदिक के मुताबिक एक तरफ भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का ग्रुप बन रहा है। दूसरी तरफ में चीन और रूस समेत सेंट्रल एशिया के चार देशों का दूसरा संगठन खड़ा हो रहा है।
- ऐसे में कहीं ये मैसेज न चला जाए कि अमेरिका के खिलाफ जा सकता है। इसलिए भारत को बहुत सोच समझकर कदम उठाना होगा। उसे बैलेंस ऑफ डिप्लोमेसी बनाकर रखनी होगी।
# भारत को साथ रखना चीन की मजबूरी
- विदेश मामलों के जानकार वैदिक का कहना है कि समिट में चीन बड़े जिम्मेदार की भूमिका निभाने की सोच रहा है। वो अगले 20 साल में अमेरिका की जगह लेने की फिराक में है।
- ऐसे में भारत को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी है। कई देशों को ये भी डर है कि चीन SCO के जरिए नाटो को टक्कर दे सकता है।
- वहीं, इस पर पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि अब चीन को अपनी पोजीशन क्लियर करनी होगी। उसे भारत को साथ लेकर चलना होगा। इसके पीछे का कारण ये है कि चीन टकराव की स्थिति में भारत को अपने विरोध में खड़ा नहीं देखना चाहता है।
Wednesday, August 29, 2018
中国欲达减排目标仍需大力减煤
若不叫停新建燃煤电厂和煤制气项目,中国将无法兑现在2030年前确保温室气体排放达到峰值的承诺。
目前,各国代表正在准备参加下周在秘鲁首都利马举行的联合国气候谈判。作为世界最大的排放国,中国是否有能力停止并逆转煤炭用量的上升势头,成为关注的一大焦点。
在为期两周的谈判中,各国将仔细审视彼此的承诺,并将本国行动和目标的具体细节上呈联合国。这项工作要在2015年3月底之前完成,并为明年12月份的巴黎峰会做准备。
世界各国首脑将在巴黎大会上汇聚一堂,达成一项涵盖包括中国在内的所有主要排放国的全球气候协议。因此,巴黎大会必须避免像2009年哥本哈根峰会那样最终演变为一场围绕谁应该承担大部分减排责任的推诿大会。
11月中旬,中美联合声明中中国承诺到2020年将煤炭消费总量控制在42亿吨左右。分析人士认为,由于经济增速放缓、钢铁水泥等产能过剩行业的停工停产、抗雾霾措施,再加上可再生能源在新增发电能力中不断上升的比重,这一目标是可以实现的。
根据官方数据,中国2013年的煤炭消费总量为36亿吨。但一些观察人士认为,不断增长的电力需求意味着,如果不能采取强有力的行动减少煤炭在能源结构中比重,2020年达到煤炭消费上限的目标就很难实现。
世界各国首脑将在巴黎大会上汇聚一堂,达成一项涵盖包括中国在内的所有主要排放国的全球气候协议。因此,巴黎大会必须避免像2009年哥本哈根峰会那样最终演变为一场围绕谁应该承担大部分减排责任的推诿大会。
11月中旬,中美联合声明中中国承诺到2020年将煤炭消费总量控制在42亿吨左右。分析人士认为,由于经济增速放缓、钢铁水泥等产能过剩行业的停工停产、抗雾霾措施,再加上可再生能源在新增发电能力中不断上升的比重,这一目标是可以实现的。
根据官方数据,中国2013年的煤炭消费总量为36亿吨。但一些观察人士认为,不断增长的电力需求意味着,如果不能采取强有力的行动减少煤炭在能源结构中比重,2020年达到煤炭消费上限的目标就很难实现。
美国环境信息机构的煤炭行业分析师阿亚卡·琼斯说:“ 年的煤炭上限目标非常宏大,需要强大的政策和监管加以支持与强化,但这并非无法办到。而且,还有一点重要的是,到2020年达到上限并不意味着‘峰值’,2020年以后会发生什么才真的令人关注。”
为了实现2020年的煤炭上限目标,以及兑现随之做出2030年后减少温室气体排放的承诺,中国各地方决策部门很有可能需要遏制未来的煤炭需求。直到目前,他们一直都在鼓励煤电的发展,以此来促进经济增长、保障就业。
为了实现2020年的煤炭上限目标,以及兑现随之做出2030年后减少温室气体排放的承诺,中国各地方决策部门很有可能需要遏制未来的煤炭需求。直到目前,他们一直都在鼓励煤电的发展,以此来促进经济增长、保障就业。
煤炭发电向西部转移
中国面临的主要挑战之一就是减缓北部和西部各产煤大省新建“矿口”燃煤电厂的增速。在这些煤炭储量丰富但经济贫困的地区,电厂越修越多,一是为了给从东部迁移而来的产业供电,二是通过超效输电线路向沿海各大城市远距离供电。
同时,中国的能源企业也在计划建设巨大的煤制气工厂,但这项工艺的碳强度很高,将来也可能会因为给本就紧张的供水造成影响而被禁止。
对内蒙古和山西等省份来说,矿产开采行业是解决就业问题的重要部门,因此备受政府部门的庇护。但是,这些省份的决策者们也必须决定采取哪些必要措施,来满足中央政府(关于减排)的愿望。
对内蒙古和山西等省份来说,矿产开采行业是解决就业问题的重要部门,因此备受政府部门的庇护。但是,这些省份的决策者们也必须决定采取哪些必要措施,来满足中央政府(关于减排)的愿望。
很多新建燃煤电厂都将建在产煤大省。这些省份中绝大多数既没有开展排放交易试点,也没有制定地方排放上限。
查塔姆研究所中国能源问题专家米歇尔·梅丹说:“有很多问题还悬而未决(似乎也还在争论之中),包括:消费者要为此支付多少?产业合并对那些本就饱受经济放缓之累的省份会产生哪些影响?定价和补贴机制的发展速度能否跟上这一结构性变化?”
她还说:“中央政府的命令非常清楚,就看各省和产业如何来领会了。”
增长曲线
另一个主要问题是:限制燃煤发电需求增长的势头是否足够强大,从而保证2020年的煤炭消费总量控制在大体相同的时间转化为峰值。
一些专家指出,中国经济增长势头的好转和电力需求的增长,意味着新建燃煤电厂使用率的提高。这会造成二十一世纪二十年代煤炭需求的加速增长,阻碍中国二氧化碳排放上限的实现,而这些排放大部分都与燃煤有关。
《21世纪经济报道》引用厦门大学中国能源经济研究中心林伯强主任的话说:“今年的经济增长很缓慢,这是一个特例,很多企业都拥有大量的煤炭存量。等到这些存量消化完毕后,对煤炭的需求可能会再次增长。”
最近美国花旗银行的一份报告称,中国今年的经济增速放缓大于预期。只有长期维持这一态势,再加上高污染能源密集型产业的转型,才有可能在2030年前达到排放峰值。
花旗的分析师托尼·袁在报告中说:“如果中国的年经济增长率仍然维持在8%左右,虽然看上去只是比目前6-7%的增长率高了一点点,但要在2030年前达到排放峰值就非常困难而且成本高昂了。”
中国的煤炭消费要在2020年前后达到峰值,那么,大部分新增能源必须是可再生能源、核能或天然气,而且能够迅速实现并网。一些观察人士指出,这个趋势已经初现端倪,2013年中国新增水电、风电和太阳能装机容量首次超过热电。
中国中央政府已经做出要求,零二氧化碳排放发电在中国总发电量中的比例要从目前的22%增加到35%。绿色和平组织的能源分析师劳瑞·迈利维尔塔指出,这一目标对于实现中国的煤炭消费上限将大有帮助。
他说:“换句话说,从现在到2020年(至多到2030年),每个月新增的清洁能源容量大约相当于新建三个大型燃煤电厂。只要有恰当的政策,包括可再生能源发电企业的全面并网,我们相信这个目标是可以实现的。”
另一个主要问题是:限制燃煤发电需求增长的势头是否足够强大,从而保证2020年的煤炭消费总量控制在大体相同的时间转化为峰值。
一些专家指出,中国经济增长势头的好转和电力需求的增长,意味着新建燃煤电厂使用率的提高。这会造成二十一世纪二十年代煤炭需求的加速增长,阻碍中国二氧化碳排放上限的实现,而这些排放大部分都与燃煤有关。
《21世纪经济报道》引用厦门大学中国能源经济研究中心林伯强主任的话说:“今年的经济增长很缓慢,这是一个特例,很多企业都拥有大量的煤炭存量。等到这些存量消化完毕后,对煤炭的需求可能会再次增长。”
最近美国花旗银行的一份报告称,中国今年的经济增速放缓大于预期。只有长期维持这一态势,再加上高污染能源密集型产业的转型,才有可能在2030年前达到排放峰值。
花旗的分析师托尼·袁在报告中说:“如果中国的年经济增长率仍然维持在8%左右,虽然看上去只是比目前6-7%的增长率高了一点点,但要在2030年前达到排放峰值就非常困难而且成本高昂了。”
中国的煤炭消费要在2020年前后达到峰值,那么,大部分新增能源必须是可再生能源、核能或天然气,而且能够迅速实现并网。一些观察人士指出,这个趋势已经初现端倪,2013年中国新增水电、风电和太阳能装机容量首次超过热电。
中国中央政府已经做出要求,零二氧化碳排放发电在中国总发电量中的比例要从目前的22%增加到35%。绿色和平组织的能源分析师劳瑞·迈利维尔塔指出,这一目标对于实现中国的煤炭消费上限将大有帮助。
Monday, August 13, 2018
रेल राज्य मंत्री राजेन गोहाईं पर बलात्कार का मामला दर्ज
नरेंद्र मोदी सरकार में रेल राज्य
मंत्री राजेन गोहाईं पर एक महिला ने रेलवे विभाग में नौकरी दिलाने के बहाने
बलात्कार करने और धमकी देने के आरोप लगाए हैं. महिला ने मंत्री गोंहाई के
ख़िलाफ़ असम के नगांव थाने में एक एफ़आईआर दर्ज करवाई है.
नगांव
ज़िले के पुलिस अधीक्षक शंकर रायमेधी ने मीडिया को बताया, "एक महिला ने
केंद्रीय रेल राज्य मंत्री के ख़िलाफ़ यौन शोषण करने की शिकायत दर्ज की है.
हमने एक मामला दर्ज किया है. शिकायतकर्ता ने खुद और उसकी बहन का नाम
एफ़आईआर में पीड़िता के रूप में उल्लेख किया है."पुलिस ने केंद्रीय मंत्री के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 417 (धोखाधड़ी), 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एक मामला (संख्या 2592/18) दर्ज किया हैं. जानकारी के अनुसार एफआईआर बीते 1 अगस्त को दर्ज कराई गई थी लेकिन यह मामला 10 अगस्त को सामने आया.
शिकायत करने वाली महिला ने मीडियाकर्मियों के समक्ष दावा किया है कि उनके पास मंत्री की एक ऐसी ऑडियो रिकार्डिंग भी है जिसमें मंत्री उनके साथ बहुत बुरी तरह से बर्ताव करते सुने जा सकते है.
पुलिस के एक अन्य शीर्ष अधिकारी ने बताया कि मंत्री के बेटे की तरफ़ से भी महिला और उसके परिवार के ख़िलाफ़ ब्लैकमेलिंग करने की शिकायत दर्ज कराई गई है. ऐसी चर्चा भी सामने आ रही है कि कथित पीड़ित महिला पर मामला वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा हैं.पुलिस के अनुसार एफआईआर में पीड़िताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्रीय मंत्री गोंहाई नौकरी दिलवाने के नाम पर करीब सात-आठ महीने से उनका यौन शोषण कर रहे थे, लेकिन बाद में मंत्री ने फ़ोन कॉल का जवाब देना बंद कर दिया और नंगाव स्थित अपने निवास पर इन महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी.
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेन गोंहाई साल 1999 से नगांव लोकसभा सीट से सांसद है.
नई दिल्ली में मौजूद मंत्री ने बलात्कार के इन आरोपों का जबाव देते हुए शनिवार को एक बयान में कहा है कि ये तमाम आरोप उनके ख़िलाफ़ एक राजनीतिक साजिश है.
उन्होंने कहा, "मामले की जांच चल रही है. ईश्वर मेरे साथ है. वो देख रहा है. समय के साथ, सच्चाई सामने आ जाएगी. यह साबित हो जाएगा कि कौन सही है और कौन ग़लत है. मुखौटा उन लोगों के चेहरों से भी उतर जाएगा जो मेरे ख़िलाफ़ इस राजनीतिक साजिश में शामिल हैं."
असम प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अपूर्व भट्टाचार्य ने कहा, "हम मामले की निष्पक्ष जांच के लिए केंद्र सरकार से संबंधित मंत्री को तत्काल हटाने की मांग करते हैं. पीड़िता को न्याय दिलाना होगा और अगर राजेन गोंहाई मंत्री बने रहे तो वे अपने रुतबे से जांच को प्रभावित कर सकते हैं."
Thursday, July 26, 2018
特朗普拿《清洁电力计划》开刀恐适得其反
当地时间周二(3月28日),美国总统特朗普在华盛顿的环境保护署(EPA)总部签署了行政令,并声称要“终结针对煤炭的战争”。此举显示,奥巴马在气候变化领域的政治遗产岌岌可危。
在现场一众煤矿工人的见证下,特朗普发表讲话,承诺让矿工们重返工作岗位,而奥巴马治下的《清洁电力计划》( )则将被重新审核。《清洁电力计划》要求各州减少现有燃煤及燃气发电厂的碳排放量,该计划正是美国履行《巴黎协定》气候承诺的重要组成部分。
然而,这份政令并不能一锤定音,想要完全“逆转”《清洁电力计划》,并非一件易事,需要经过漫长的行政审批流程,在司法程序上也会遇到重重阻挠。
特朗普的这纸政令将使其成为众矢之的。一项公投结果显示,大部分民众仍选择支持《清洁电力计划》,赞同减少温室气体排放,连在大选中支持特朗普的“红州”和在曾经反对通过CPP的州民意也是如此。
美国国内很多的州市政府及公共电力公司都明确表示支持《清洁电力计划》。可再生能源行业创造就业的速度是美国其他行业的12倍。其中,风电工程师成为需求增长最快的岗位,并且绝大多数此类就业是在共和党选区。如此可见,清洁能源投资能够为美国带来巨大经济的效益,民众也不愿看到美国将这样炙手可热的领域拱手让人,尤其是以中国为代表的新兴经济体。后者正积极制定政策框架,支持可再生能源的发展。
即便特朗普的这纸政令成功地废除了《清洁电力计划》,也不太可能扭转美国煤炭行业的颓势。真正使其走下坡路的,并非是政府的监管,而是市场这只看不见的手。天然气及可再生能源以其低廉的价格,逐渐替代传统的煤炭行业。无论有没有环保署的监管,煤炭行业的颓势都无法逆转。区别就在于《清洁电力计划》可以加快能源结构的转型,尽可能降低煤炭行业走衰带来的冲击。
另一方面,《清洁电力计划》也能帮助美国履行其在《巴黎协定》中的重要承诺:以2005年的排放量为基准,在2025年和2030年之前分别减排26-28%和32%。而《清洁电力计划》贡献了2025年减排任务的15%。尽管特朗普在竞选时声称要退出《巴黎协定》,但到目前为止,美国依然是该协定的缔约国。
而对于那些正在着手履行减排承诺、制定相关政策法规控制煤炭生产和燃烧的国家而言,促使他们这么做的原因并不全是因为气候变化,还有对空气污染、水污染所引发的经济及公共卫生问题的担忧。
特朗普在环保局演说中声称,“能源独立会使我们更加安全,能喝到干净的水、呼吸到清洁的空气”, 对此很多人并不认同。美国前任环保署署长吉娜·麦卡锡认为该政令会加剧空气污染及水污染。
《清洁电力计划》旨在降低25%的污染物排放,这意味着每年避免2700-6600例过早死亡,使14—15万个孩子免受哮喘的困扰。如此可见,最终为该政令买单的将是普通美国民众。
在现场一众煤矿工人的见证下,特朗普发表讲话,承诺让矿工们重返工作岗位,而奥巴马治下的《清洁电力计划》( )则将被重新审核。《清洁电力计划》要求各州减少现有燃煤及燃气发电厂的碳排放量,该计划正是美国履行《巴黎协定》气候承诺的重要组成部分。
然而,这份政令并不能一锤定音,想要完全“逆转”《清洁电力计划》,并非一件易事,需要经过漫长的行政审批流程,在司法程序上也会遇到重重阻挠。
特朗普的这纸政令将使其成为众矢之的。一项公投结果显示,大部分民众仍选择支持《清洁电力计划》,赞同减少温室气体排放,连在大选中支持特朗普的“红州”和在曾经反对通过CPP的州民意也是如此。
美国国内很多的州市政府及公共电力公司都明确表示支持《清洁电力计划》。可再生能源行业创造就业的速度是美国其他行业的12倍。其中,风电工程师成为需求增长最快的岗位,并且绝大多数此类就业是在共和党选区。如此可见,清洁能源投资能够为美国带来巨大经济的效益,民众也不愿看到美国将这样炙手可热的领域拱手让人,尤其是以中国为代表的新兴经济体。后者正积极制定政策框架,支持可再生能源的发展。
即便特朗普的这纸政令成功地废除了《清洁电力计划》,也不太可能扭转美国煤炭行业的颓势。真正使其走下坡路的,并非是政府的监管,而是市场这只看不见的手。天然气及可再生能源以其低廉的价格,逐渐替代传统的煤炭行业。无论有没有环保署的监管,煤炭行业的颓势都无法逆转。区别就在于《清洁电力计划》可以加快能源结构的转型,尽可能降低煤炭行业走衰带来的冲击。
另一方面,《清洁电力计划》也能帮助美国履行其在《巴黎协定》中的重要承诺:以2005年的排放量为基准,在2025年和2030年之前分别减排26-28%和32%。而《清洁电力计划》贡献了2025年减排任务的15%。尽管特朗普在竞选时声称要退出《巴黎协定》,但到目前为止,美国依然是该协定的缔约国。
而对于那些正在着手履行减排承诺、制定相关政策法规控制煤炭生产和燃烧的国家而言,促使他们这么做的原因并不全是因为气候变化,还有对空气污染、水污染所引发的经济及公共卫生问题的担忧。
特朗普在环保局演说中声称,“能源独立会使我们更加安全,能喝到干净的水、呼吸到清洁的空气”, 对此很多人并不认同。美国前任环保署署长吉娜·麦卡锡认为该政令会加剧空气污染及水污染。
《清洁电力计划》旨在降低25%的污染物排放,这意味着每年避免2700-6600例过早死亡,使14—15万个孩子免受哮喘的困扰。如此可见,最终为该政令买单的将是普通美国民众。
Wednesday, May 30, 2018
почему украинские журналисты не освещают дело Кирилла Вышинского
Украинские журналисты рассказали RT, почему избегают темы ареста и содержания под стражей главы РИА Новости Украина Кирилла Вышинского. По словам представителей оппозиционных СМИ, они боятся негативных последствий, в частности преследований со стороны СБУ, а сотрудники провластных медиа не поддерживают коллегу по идеологическим убеждениям, считая его «пропагандистом».
Играет свою роль и атмосфера страха, которая в последнее время довлеет в журналистском сообществе, — многие СМИ в стране уже сталкивались с репрессивными мерами и опасаются закрытия. «Убийство» и «воскрешение» Аркадия Бабченко ещё больше усугубило ситуацию. Эксперты отмечают, что «по стратегическим вопросам оппозиция и власть едины», и прежде всего это касается антироссийской политики.
Тема ареста руководителя информационного агентства РИА Новости Украина Кирилла Вышинского практически исчезла из новостной повестки украинских СМИ. RT пообщался с представителями ведущих медиа страны и выяснил, почему они не поддерживают своего коллегу и не информируют украинцев о ходе уголовного дела в отношении Вышинского.
Как рассказал RT источник в Inter Media Group (управляет телеканалами «Интер», «Интер+», НТН, К1, К2, «МЕГА», «Пиксель», Zoom, Enter-фильм), основная причина заключается в том, что украинские журналисты боятся репрессий со стороны властей:
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